निःश्वसन
उच्छ्वसन
सब देह-कर्म, यह अवगुंठन
मोह-पाश के बंधन तुम
बस तुम! तुम ही तुम
व्यक्त हाव
अव्यक्त भाव
नेह-क्लेश, अभाव-विभाव
रूप-गंध के कारण तुम
बस तुम! तुम ही तुम
सम्मुख हो जब
विमुख हुए, तब
मनस-पटल की चेतनता सब
अनुभूति-रेख में केवल तुम
बस तुम! तुम ही तुम
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया अन्नपूर्णा जी बहुत आभार!
आदरणीया वंदना जी आपका बहुत-बहुत आभार!
आदरणीय जितेन्द्र जी आपका बहुत आभार!
जीवन की हर सांस को उस शर्व्शाक्तिमान प्रभु से जोडती इस रोचक रचना के लिए आपको तहे दिल बधाई ..मेरी हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार करें ..सादर
अति सुन्दर रचना। बधाई।
बहुत खूब ! आ0 बृजेश जी सुंदर रचना बधाई आपको ।
भावनाओं कोअच्छे ढंग से पिरोया है आपने.
अंतिम बंद सबसे अच्छा लगा।
आपको हार्दिक बधाई इस सुंदर अभिव्यक्ति के लिए आदरणीय।
सादर
मन को छू जाते हुए, बहुत सुंदर भावों से संजोयी रचना. हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय बृजेश जी
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपके शब्दों ने मेरे प्रयास को एक नया आयाम प्रदान किया है.आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय धामी जी आपका हार्दिक आभार!
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