For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- जिंदगी कितनी हंसीं है आओ आकर देख लो

जिंदगी कितनी हंसीं है आओ आकर देख लो
एक पिंजराबंद पंछी को उड़ाकर देख लो

तुम हमें समझा रहे हो बेवफाई का सबब?
फैसला हो जायेगा नज़रें मिलाकर देख लो

मंजिलें जब पास हों तब और करती हैं भ्रमित
जो न हो विश्वास क़दमों को बढ़ा कर देख लो

हम निहत्थे हैं मगर माँ की दुवाएँ साथ हैं
जीत किसकी, हार किसकी आज़मा कर देख लो

माँ मुझे मालूम है हालात कुछ अच्छे नहीं
हौसला हो जायेगा गर मुस्कुरा कर देख लो

लोग मुझसे पूछते हैं शायरी कैसे लिखें
दर्द को पन्ने पे रखकर गुनगुना कर देख लो

- मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 918

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ajay Agyat on March 2, 2014 at 1:59pm

umda

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2014 at 10:36am

मंजिलें जब पास हों तब और करती हैं भ्रमित
जो न हो विश्वास क़दमों को बढ़ा कर देख लो.........यह शेर बहुत खास हुआ

बेहद खुबसूरत गजल आदरणीय अनुराग जी, हार्दिक बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 2, 2014 at 9:31am

आदरनीय अनुराग भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ , आदरणीय मतला बहुत पसन्द आया , आपको बधाइयाँ ॥

जिंदगी कितनी हंसीं है आओ आकर देख लो
एक पिंजराबंद पंछी को उड़ाकर देख लो ------ बहुत खूब ॥ 

Comment by Anurag Anubhav on March 2, 2014 at 9:19am
आदरणीय सरिता भाटिया जी, मैं स्वयं ग़ज़ल का बिलकुल नया विद्यार्थी हूँ.. अतः अगर कहीं भूल हो गयी हो तो मुझे अवगत करें... मेरे मुताबिक मैंने ये ग़ज़ल 2122/2122/2122/212 पर लिखी है... आगे सभी जानकार मेरा मार्गदर्शन करें... धन्यवाद
Comment by बृजेश नीरज on March 2, 2014 at 8:06am

बहुत अच्छी ग़ज़ल है! आपको हार्दिक बधाई!

यदि बहर का जिक्र किया गया होता तो हम जैसे नव-विद्यार्थियों को भी शिल्प समझने में आसानी होती.

सादर!

Comment by atul kushwah on March 1, 2014 at 10:33pm

जिंदगी कितनी हंसीं है आओ आकर देख लो
एक पिंजराबंद पंछी को उड़ाकर देख लो..
बहुत खूबसूरत, बधाई आदरणीय अनुराग जी।

Comment by कल्पना रामानी on March 1, 2014 at 9:10pm

वाह, वाह!!हर शे'र लाजवाब! मतला विशेष पसंद आया बहुत ही सुंदर गजल। आदरणीय अनुराग जी,बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by Sarita Bhatia on March 1, 2014 at 8:35pm

वाह ,बहुत बधाई पर आदरणीय गजल शायद बह्र में नहीं 

Comment by annapurna bajpai on March 1, 2014 at 7:29pm


हम निहत्थे हैं मगर माँ की दुवाएँ साथ हैं
जीत किसकी, हार किसकी आज़मा कर देख लो

माँ मुझे मालूम है हालात कुछ अच्छे नहीं
हौसला हो जायेगा गर मुस्कुरा कर देख लो...................... बहुत खूब , हर अशर कमाल का हुआ है । आ0 अनुराग जी दाद कुबूल फरमाए । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
14 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service