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जीवन में कितने चक्रव्यूह

पर घबराना कैसा  

पग-पग मिले सघन अरण्य

खूंखार  एक  सिंह अदम्य

तुझे मिटाने  की खातिर

खेले  दांव  बहु  जघन्य

अहो  प्रतिद्वंदी  ऐसा

पर घबराना कैसा   

 

करके तराश  दन्त नक्श

जाना तू उसके समक्ष

नेस्तनाबूत करने को   

उसी हुनर में होना दक्ष

कर वार उसी पर वैसा  

पर घबराना कैसा 

शत्रु  हावी हो या पस्त

तू विजयी हो या परास्त

होंसलों की डोरी पकड़   

विदग्ध बन, हो आश्वस्त  

होने दो  जो हो जैसा

पर घबराना कैसा

 

कुटिल जाल रचे कुतंत्र  

मिलें श्रान्ति और षड्यंत्र

मंजिल है कहाँ आसान

उद्वेग से न हो परतंत्र

चाहे चक्रव्यूह जैसा

पर घबराना कैसा

**************

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 28, 2014 at 8:20pm

आ.गिरिराज भंडारी जी रचना का सार आपको सार्थक लगा आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ह्रदय तल से आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 28, 2014 at 6:51pm

आदरणीया राजेश जी, सार्थक सन्देश है , जीवन मे आने वाली  किसी भी  परिस्थियों मे हौसला कम नही करना चाहिये !!          ॥सुन्दर सार्थक रचना  ने लिये आपको बधाई ॥

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