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तीन दोहे (अन्नपूर्णा बाजपेई)

क्षण भंगुर जीवन हुआ, जीवन का क्या मोल ।

भज लो तुम भगवान को, क्यों रहे विष घोल ।। 

बंद पड़ी सब  खिड़कियाँ, चाहे तो लो खोल ।

खुले हुये अंबर तले, कर लो अब किल्लोल ॥ 

* भामा माया मोहिनी, मोहति रूप अनेक ।

   माया माला भरमनी, फंसत नाहीं नेक ॥

*इस दोहे को इस तरह भी देखें :- 

ऐसी माया मोहिनी मोहती  रूप अनेक ।

केवल माला फेर के कोई न बनता नेक ॥ 

संशोधित 

अप्रकाशित एवं मौलिक

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2014 at 2:09am

जितना आप बतायीं उतना हम सभी जानते हैं .. लेकिन दोहा कैसे कह रहा है उसे भी देखना जरूरी है न ..

सादर

Comment by annapurna bajpai on February 4, 2014 at 1:30am

आदरणीय सौरभ जी यह जो सुंदर मनुष्य  जीवन हमे मिला है इसका सदुपयोग करने की बात दोहे चौथे चरण मे परिलक्षित होती है इसी लिए जीवन को अनमोल कहा है । बाकी आप जैसा आदेश करें । सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 3, 2014 at 8:36pm

दोहा पर बहुत सधा हुआ प्रयास हो रहा है आदरणीय.. बधाई..

कथ्य को भी तार्किक करना उचित होगा.  जैसे, भज तो लें हम भगवान को लेकिन जीवन के अनमोल होने से उसका क्या सम्बन्ध है ? और, इसी छंद का पहला पद तो कुछ और ही कहता है ! 

यही कुछ कहना चाह रहा हूँ. 

सादर

Comment by annapurna bajpai on January 31, 2014 at 9:13pm

आदरणीय नीरज कुमार जी , आ0 जितेंद्र जी एवं आ0 कुंती दीदी आप सबका हार्दिक आभार । 

Comment by coontee mukerji on January 31, 2014 at 9:00pm

सुंदर दोहे.....अन्नपूर्णा जी.हार्दिक बधाई.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 31, 2014 at 10:26am

सुंदर सात्विक दोहों पर बधाई आपको आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by Neeraj Neer on January 31, 2014 at 9:26am

बहुत सुन्दर दोहे बधाई .. 

Comment by annapurna bajpai on January 31, 2014 at 1:28am

आ0 बृजेश जी मोहति = लुभाती , मतलब अनेक तरह से लुभाती है । सादर 

Comment by बृजेश नीरज on January 30, 2014 at 8:20pm

अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!

पहले दोहे के दूसरे और चौथे चरण के सन्देश विरोधाभासी हैं!

'मोहति' शब्द का अर्थ बताने का कष्ट करें!

Comment by annapurna bajpai on January 30, 2014 at 5:03pm

आ0 पवन जी , आ0 गिरिराज जी आपका हार्दिक आभार । 

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