For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नैतिकता के पतन से, फैला कंस प्रभाव॥
मात- पिता सम्मान नहि, नस नस में दुर्भाव॥

पश्चिम संस्कृति जी रहे, हम भूले निज मान।
कहते हम संतान कपि, जबकि हैं हनुमान॥

निज गौरव को भूलकर, बनते मार्डन लोग।
ये भी क्या मार्डन हुए, पाल रहे बस रोग॥

अपने घर में त्यक्त है, वैदिक ज्ञान महान।
महा मूढ़ मतिमंद हम, करते अन्य बखान॥

लौटें अपने मूल को, जो है सबका मूल।
पोषित होता विश्व है, सार बात मत भूल॥

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1116

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 3, 2014 at 6:12pm
आदरणीय सौरभ सर जी! यद्यपि पढ़ा तो था, किन्तु पुन: पढ़ता हूँ। यदि आपने संकेत किया है तो अवश्य पढ़ने में त्रुटि हुई है, सम्भव है समझने में भी त्रुटि हुई हो।
इसके बाद दोहों में सुधार करता हूँ।
सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 31, 2014 at 2:19pm

भाई विंध्श्वरीजी, पहली बात, क्या आपने जनवरी माह के छंदोत्सव की भूमिका को सही ढंग से पढ़ा लिया है ? या, आयोजन कीभूमिका  दोहा और रोला छंदों पर आधारित होने के कारण उसके प्रति कोई जिज्ञासा ही नहीं बनी ?

जो कुछ आदरणीया प्राची जी ने उद्धृत किया है क्या उस पर उस भूमिका में चर्चा नहें हुई है ? उसके प्रति अगाह नहीं किया गया है ? कृपया देख लीजियेगा

और, सिर्फ़ कथ्य पर वाह वाह क्या करूँ. यह तो हमें मालूम ही है कि आप सामाजिक विडम्बनाओं के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं. तभी ऐसे कथ्य आपसे अपेक्षित भी हैं.

शुभेच्छाएँ

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 25, 2014 at 5:48pm
भाई अरुण शर्मा जी! रचना पर समय देने एवं सराहना करने लिये आपका आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 25, 2014 at 5:47pm
आदरणीया अन्नपूर्णा जी! आपका हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 25, 2014 at 5:46pm
आदरणीया सरिता जी! आपका हृदय तल से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 25, 2014 at 5:44pm
आदरणीया प्राची दीदी जी! आपने अपने व्यस्ततम जीवन से मुझ प्रशिक्षु के दोहों के लिये समय निकाल कर रचना और मुझे दोनों को कृतार्थ किया है। जिसके लिये मैं आपका आभारी हूँ।
शिल्प के सम्बंध में आपने दोहावली का सूक्ष्मता से मूल्यांकन किया है। निश्चय ही यह रचनाकर्म में आचरणीय है। मैं आप द्वारा निर्देशित त्रुटियों को यथाशक्य दूर करने का प्रयत्न करता हूँ।
सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2014 at 12:35pm

नैतिक मूल्यों के पतन पर बहुत सुन्दर दोहावली प्रस्तुत की है प्रिय विन्ध्येश्वरी जी... इस उन्नत भाव प्रवण प्रस्तुति के लिए दिली बधाई.

अब मैं आपके एक दोहे के माध्यम से शिल्प पर भी कुछ कहने से खुद को रोक नहीं पा रही हूँ..

नैतिकता के पतन से, फैला कंस प्रभाव॥
मात- पिता सम्मान नहि, नस नस में दुर्भाव॥

... प्रस्तुत दोहे के शिल्प को यदि हम सूक्ष्मता से देखें तो-

नैतिकता के पतन से , विषम चरण का अंत १११ या २१२ से किये जाने की मान्यता है पर यहाँ पतन का उच्चारण 12 होने के कारण विषम चरण का अंत १२२ जैसा प्रतीत हो रहा है

मात- पिता सम्मान नहि , सम्मान्नहि जैसा उच्चारण हो रहा है जिससे शाब्दिक ध्वनि का दोष बन रहा है और दोनों शब्दों का अलग अलग उच्चारण स्पष्ट नहीं हो रहा.

ये कुछ सूक्ष्म बाते हैं जिन पर आजकल मंच पर यदा कदा चर्चाएँ होती रहती हैं.. यहाँ सांझा करना निश्चय ही आपको लाभान्वित करेगा ऐसी उम्मीद है.

शुभकामनाएं 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 24, 2014 at 12:04pm
आदरणीय गिरिराज जी! आपका हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 24, 2014 at 12:00pm
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी! आपका हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 24, 2014 at 11:58am
आदरणीय शिज्जू जी! आपका हार्दिक आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service