For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहुत गुमसुम सी लगती है ( ग़ज़ल ) गिरिराज भन्डारी

1222  1222  1222   1222

बहुत गुमसुम सी लगती है

 

ज़बाँ खामोश रहती है, निगाहें कुछ नही कहतीं

अगर जज़्बा न हो दिल में, तो बाहें कुछ नही कहतीं

यहाँ के हादसों का सच, तुम्हें खुद जानना होगा

तुम्हें मालूम तो होगा, कि राहें कुछ नहीं कहतीं

बहुत नोची गयी है ये, बहुत तोड़ी गयी है पर

वो अब तक जी रही है क्यों, ये चाहें कुछ नहीं कहतीं

ये ख़ंज़र पीठ में है क्यों, रफ़ाक़त ये कहाँ की है

बहुत गुमसुम सी लगती है, कराहें कुछ नही कहतीं

ख़ुदा का नूर है सब में, करमफ़र्मा वही है पर

करम चुप चाप बहता है, पनाहें कुछ नहीं कहतीं

उधर कुछ भी असर होता दिखाई क्यों नहीं देता

इधर कितनी रसाई है, ये आहें कुछ नहीं कहतीं 

 

**********************

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

Views: 854

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 17, 2014 at 8:01am

आदरणीय नादिर खान भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 17, 2014 at 8:00am

आदरणीय सौरभ भाई , प्रयास कर्म की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया , जो कुछ भी मुझसे अच्छा हो पाता है उसमे आपकी और अन्य गुणी जनों की सीख शामिल है , आप सब का बहुत आभार ॥

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 17, 2014 at 7:36am

आदरणीय भाई गिरिराज जी, बेहद उम्दा गजल दो  शेर अत्यधिक  पसंद आये 

/ये ख़ंज़र पीठ में है क्यों, रफ़ाक़त ये कहाँ की है

बहुत गुमसुम सी लगती है, कराहें कुछ नही कहतीं

/

ख़ुदा का नूर है सब में, करमफ़र्मा वही है पर

करम चुप चाप बहता है, पनाहें कुछ नहीं कहतीं

Comment by vandana on January 17, 2014 at 6:57am

यहाँ के हादसों का सचतुम्हें खुद जानना होगा

तुम्हें मालूम तो होगाकि राहें कुछ नहीं कहतीं

ये ख़ंज़र पीठ में है क्योंरफ़ाक़त ये कहाँ की है

बहुत गुमसुम सी लगती हैकराहें कुछ नही कहतीं

बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय सर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 16, 2014 at 11:57pm

आदरणीय गिरिराज जी, बेहद उम्दा गजल यह शेर खास पसंद हुआ

ये ख़ंज़र पीठ में है क्यों, रफ़ाक़त ये कहाँ की है

बहुत गुमसुम सी लगती है, कराहें कुछ नही कहतीं

Comment by ajay sharma on January 16, 2014 at 11:43pm

ki sher pe kha kahe alfaz  hi doondh rahe hai ............wah wah sir ji...............sampurna gazal bar bar kai bar padi kintu man ab tak nahi bhara ................................dili mubaraqbaad ..shukriya ...aisi sharing ke liye ......... 

Comment by नादिर ख़ान on January 16, 2014 at 11:35pm

ज़बाँ खामोश रहती हैनिगाहें कुछ नही कहतीं

अगर जज़्बा न हो दिल मेंतो बाहें कुछ नही कहतीं

बहुत खूब कहा आदरणीय गिरिराज जी ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 16, 2014 at 11:35pm

ख़ुदा का नूर है सब में, करमफ़र्मा वही है पर

करम चुप चाप बहता है, पनाहें कुछ नहीं कहतीं..

वाह !

प्रयासकर्म की सुन्दर प्रस्तुति हुई है आदरणीय


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 16, 2014 at 9:45pm

आदरणीया कुंती जी , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 16, 2014 at 9:42pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
23 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service