दोस्ती
देखता हूँ सहचर मीत मेरे
सहसा, दोस्ती की निगाहें हैं झुकी हुई
पलकें भीगी
घिरते आए संत्रस्त ख़यालों पर
खरोंचते-उतरते संतप्त ख़याल ...
फिसलते भीगे गालों पर
दोस्ती के वह सुनहले रंग
बिखरते गीले काजल-से
कहाँ हैं दोस्ती की रोश्नी की
वह अपरिमय चिनगियाँ
बनावटी थीं क्या ? नहीं, नहीं,
चमकती थीं वह अपेक्षित आँखों में ...
रुको, माप लूँ मैं बची हुई थोड़ी-सी
उस चमक की थाहें
शायद उसी को सोचते, शा-य-द
नींद आ जाए,
कि खुरदुरी दूरियों को पार कर
भीतर के उन आवेगों में
गिरफ़तार
अँधियारे वीराने में भी
बहला लूँ
अब हुए लावारिस बेकाबू सपनो कों
आँख के खुलने तक, या क्षण-पल
साँस के रुकने तक ...
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- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरनीय बड़े भाई विजय जी , बहुत सुन्दर !! सुन्दर भाव स्थिति को शब्द देने के लिये आपको बहुत बधाइयाँ ॥
देखता हूँ सहचर मीत मेरे
सहसा, दोस्ती की निगाहें हैं झुकी हुई
पलकें भीगी
घिरते आए संत्रस्त ख़यालों पर
खरोंचते-उतरते संतप्त ख़याल ......क्या भाव हैं ...हृदयबेधी
कहाँ हैं दोस्ती की रोश्नी की
वह अपरिमय चिनगियाँ
बनावटी थीं क्या ? नहीं, नहीं,
चमकती थीं वह अपेक्षित आँखों में ...
रुको, माप लूँ मैं बची हुई थोड़ी-सी
उस चमक की थाहें.............................................. वाह ! आदरणीय निकोर जी कितनी सुंदरता से भावों को अपनी रचना मे ढाला है बहुत बधाई आपको ।
रुको, माप लूँ मैं बची हुई थोड़ी-सी
उस चमक की थाहें
शायद उसी को सोचते, शा-य-द
नींद आ जाए,
कि खुरदुरी दूरियों को पार कर
भीतर के उन आवेगों में
गिरफ़तार
अँधियारे वीराने में भी
बहला लूँ
अब हुए लावारिस बेकाबू सपनो कों
आँख के खुलने तक, या क्षण-पल
साँस के रुकने तक ...वाह सर लाजवाब बहुत खूब ......जवाब नहीं आपका क्या भाव है आपके……बहुत गहरी बात ....सच दिल को छू गयी ......बहुत खूब लाजवाब ......बधाई सर
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