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इसी जद्दोज़हद में
ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं
हर्फ़ हर्फ़ जोड़ कर ज्यों
सफे भर रहे हैं

अधूरी है रदीफ़
काफिया नहीं है पूरा
तुकबंदी मिलाने की बस
जुगत कर रहे हैं

ज़िन्दगी गो कि
इक ग़ज़ल है
रूठा हुआ हमसे
अभी ये शगल है
अशआरों की तरह
उमड़ते हैं
चेहरे कई लेकिन
'मीटर' जो बैठ जाए
वही भर पन्नो पर
उतर रहे हैं
दुष्यंत .............

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Comment

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 8, 2010 at 12:01pm
मेरे भाई अभी ख्यालों की पुख्तगी और अंदाज़-ए-बयां की सादगी और ज़ुबान की मजबूती पर ध्यान दीजिये ! काफिया-रदीफ़ और वजन-ओ-बहर खुद-ब-खुद काबू में आ जायेगा ! प्रयास बहुत ही अच्छा है !
Comment by satish mapatpuri on June 4, 2010 at 3:06pm
अधूरी है रदीफ़
काफिया नहीं है पूरा
तुकबंदी मिलाने की बस
जुगत कर रहे हैं
बहुत खूब सेवक साहेब, बहुत ही अच्छा प्रयास है.
Comment by Rash Bihari Ravi on June 3, 2010 at 2:58pm
bahut khubsurat,
Comment by दुष्यंत सेवक on June 1, 2010 at 6:50pm
dhanyavaad kanchan ji, bagi ji, preetam bhai, biresh ji aur admin ji.
Comment by Kanchan Pandey on June 1, 2010 at 2:04pm
aek aek shabd sadha huwa, bahut badhiya aur jabardast rachna, thanks,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 1, 2010 at 8:58am
ज़िन्दगी गो कि
इक ग़ज़ल है
रूठा हुआ हमसे
अभी ये शगल है,

वाह दुष्यंत भाई वाह , तुकबंदी मिलाने की जुगत करते हुवे भी आपने अएक शानदार प्रस्तुति दी है, बहुत बढ़िया लिखा है आपने,बहुत बहुत बधाई,और हा जिंदगी के ग़ज़ल और उसके शगल को कभी रूठने ना दीजिये, मना लीजिये,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 31, 2010 at 9:47pm
अधूरी है रदीफ़
काफिया नहीं है पूरा
तुकबंदी मिलाने की बस
जुगत कर रहे हैं

bahut badhiya dushyant bhai...ekdam lajawab
Comment by Biresh kumar on May 31, 2010 at 6:31pm
अशआरों की तरह
उमड़ते हैं
चेहरे कई लेकिन
'मीटर' जो बैठ जाए
वही भर पन्नो पर
उतर रहे हैं
============
kiya baat kiya baat
kiya baat!!!!!!!
Comment by Admin on May 31, 2010 at 4:56pm
अधूरी है रदीफ़
काफिया नहीं है पूरा
तुकबंदी मिलाने की बस
जुगत कर रहे हैं,

बहुत बढ़िया ये जद्दोजहद है, दुष्यंत जी, आज ही योगराज जी से बात हो रही थी तो उन्होने मुझसे हँसते हुवे
कहे की ये दुष्यंत कहा है, आप जरा इनपर मोटा जुर्माना ठोकिये, तो मैने कहा की दुष्यन्त जी जरूर कोई ग़ज़ल पोस्ट कर रहे होंगे , तब उन्होने कहा की अच्छी ग़ज़ल आयेगी तो जुर्माना माफ़ , हा हा हा हा , और सही मे आप ने बहुत ही सुंदर ग़ज़ल डाल दिया है ,जुरमाना तो नहीं ही लगेगा, साथ मे आपको बहुत बहुत धन्यवाद,

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