इन आँखो में , पलते सपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या
दुनिया सबकी ,फिर अपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या
खुशी , प्यार , अपनापन , और सुक़ून की चाह बराबर
अपनो से तक़रार और फिर मनुहार भरी इक आह बराबर
हंसता है जब - जब तू , जिन जिन बातों पे हंसता हूँ मैं भी
तूँ रोए जबभी , तो मैं भी रो दूँ ,
आँसू के रंग , तेरे - मेरे , अलग अलग है क्या
तू पत्थर को तोड़ें या मैं फिरूउँ तराशता संगमरमर को
मैं क़लम से तोड़ूं तलवारें , या तू जीत ले कोई समर को
काटता है रातें सियाह तू , तो धूप में तपता हूँ मैं भी
तू बोए धरती , तो मैं भी सींचू ,
प्रश्नों के हल , तेरे-मेरे , अलग अलग है क्या
इस दुनिया के हमने तुमने , कितने ही टुकड़े कर डाले
अब क्या रोने से होता जब , ज़ख़्म बने इस तन के छाले
जानता है तू , ग़लतियाँ इक तरफ़ा ना थी , मानता हूँ मैं भी
तू खोजे मुस्तकबिल , तो मैं भी चलूं ,
माझी के गम तेरे- मेरे , अलग अलग हैं क्या
प्रस्तुति , मौलिक व अप्रकाशित
द्वारा अजय कुमार शर्मा
Comment
मैं क़लम से तोड़ूं तलवारें , या तू जीत ले कोई समर को
काटता है रातें सियाह तू , तो धूप में तपता हूँ मैं भी
तू बोए धरती , तो मैं भी सींचू ,
प्रश्नों के हल , तेरे-मेरे , अलग अलग है क्या....... अलग तरह की रचना जो अपने आप से संवाद करती और सवाल भी करती हुयी हमें भी कुछ क्षण को सोचने को कहती है ..बधाई आपको सादर
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