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दोहे : शुभ-नूतन की बाट // -सौरभ

प्रतिपल नव की कल्पना, पल-व्यतीत आधार  
सामासिक दृढ़ भाव ले,  आह्लादित संसार  

सिद्धि प्रदायक वर्ष नव : धर्म-कर्म-शुभ-अर्थ
मंशा कुत्सित दानवी, लब्धसिद्धि हित व्यर्थ

शाश्वत मनस स्वभाव से नूतन नवल स्वरूप
खेल रही मृदु ओस में खिलखिल करती धूप  

आओ मिलजुल तय करें, हमसब निज संसार
स्वीकारें उत्साह पल, जीयें मधुमय प्यार   

आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ

इच्छा आशा औ’ व्यथा, भाव-भावना रूप
फिरभी कुहरे में निकल, पुलक किलकती धूप  
*************

-सौरभ

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by coontee mukerji on December 27, 2013 at 2:46am

प्रतिपल नव की कल्पना, पल-व्यतीत आधार  
सामासिक दृढ़ भाव ले,  आह्लादित संसार  ......सबका मन आह्लादित होवे....नये वर्ष की नयी धूप की नयी उमंग के साथ ढेर सारी मंगल कामनाएँ.

सादर

कुंती.

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 26, 2013 at 10:43pm

आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ 
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ 

अद्भुत, सुन्दर दोहावली आदरणीय सौरभ जी  !

Comment by नादिर ख़ान on December 26, 2013 at 10:34pm

शाश्वत मनस स्वभाव से नूतन नवल स्वरूप
खेल रही मृदु ओस में खिलखिल करती धूप

आओ मिलजुल तय करें, हमसब निज संसार
स्वीकारें उत्साह पल, जीयें मधुमय प्यार

आदरणीय सौरभ जी, आपने एकबार फिर कमाल कर दिया।

हर फील्ड में आप माहिर हैं । बहुत सुंदर दोहे ...........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 26, 2013 at 10:21pm

वाह बेहतरीन दोहावली है, आदरणीय सौरभ सर, बहुत बहुत बधाई इस दोहावली के लिये

Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2013 at 10:05pm

शाश्वत मनस स्वभाव से नूतन नवल स्वरूप
खेल रही मृदु ओस में खिलखिल करती धूप ////////वाह आदरणीय क्या बिम्ब खीचा है आपने

इच्छा आशा औ’ व्यथा, भाव-भावना रूप
फिरभी कुहरे में निकल, पुलक किलकती धूप ////अहा क्या कहने आदरणीय

बहुत ही सुन्दर दोहे आदरणीय बहुत बहुत बधाई आपको। …।सादर

अनुपम दोहों के लिए ,श्रीमन का आभार
अविरल यूँ बहती रहे,अनुपम रसमय धार!!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 26, 2013 at 9:58pm

आहा ! सभी दोहे मोतियों के मानिंद असर छोड़ते हैं, सबसे सुन्दर मुझे निम्नलिखित दोहा लगा

//आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ//

बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर |

Comment by रमेश कुमार चौहान on December 26, 2013 at 9:46pm

शब्द प्रति शब्द खिल रहे, भाव देत गंभीर ।
दोहा प्रति दोहा कहे, सौरभ सर मतिधीर ।।

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:01pm

आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ ...अति सुंदर

इच्छा आशा औ’ व्यथा, भाव-भावना रूप

फिरभी कुहरे में निकल, पुलक किलकती धूप ...    .... क्या बात है !

 
. वाह वाह सम्पूर्ण दोहावली  अनुपम है... आदरणीय सौरभ सर हार्दिक बधाई स्वीकार करें ...

Comment by बृजेश नीरज on December 26, 2013 at 8:00pm

वाह! अप्रतिम! नूतनता को कितने सुन्दर अर्थ मिले हैं!

//आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ 
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ// ........अप्रतिम!

इसके आगे क्या लिखा जाएगा!

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

सादर!

Comment by कल्पना रामानी on December 26, 2013 at 7:51pm

आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ

इच्छा आशा औ’ व्यथा, भाव-भावना रूप
फिरभी कुहरे में निकल, पुलक किलकती धूप....बहुत सुंदर

हर दोहा उत्तम भाव लिए हुए है,   आदरणीय सौरभ जी सादर बधाई

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