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शुभारंभ है नए साल का//नवगीत//कल्पना रामानी

फिर से नई कोपलें फूटीं,

खिला  गाँव का बूढ़ा  बरगद।

शुभारंभ है नए साल का,

सोच, सोच है मन में गदगद।

 

आज सामने, घर की मलिका

को उसने मुस्काते देखा।

बंद खिड़कियाँ खुलीं अचानक,

चुग्गा पाकर पाखी चहका।

 

खिसियाकर चुपचाप हो गया,

कोहरा जाने कहाँ नदारद।

  

खबर सुनी है,फिर अपनों के

उस  देहरी पर कदम पड़ेंगे।

नन्हीं सी मुस्कानों के भी,

कोने कोने बोल घुलेंगे।

 

स्वागत करने डटे हुए हैं,

धूल झाड़कर चौकी मसनद।

 

लहकेगी तुलसी चौरे पर,

चौबारे चौपाल जमेगी।

नरम हाथ की गरम रोटियाँ,

बहुरानी सबको परसेगी।

 

पिघल-पिघल कर बह निकलेगा

दो जोड़ी नयनों से पारद।

बरगद के मन द्वंद्व छिड़ा है,

कैसे हल हो यह समीकरण।

रिश्तों का हर नए साल में,

हो जाता है बस नवीकरण।

 

अपने चाहे दुनिया छोड़ें,

नहीं छूटता पर ऊँचा पद।

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना रामाँनी

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Comment by कल्पना रामानी on December 24, 2013 at 1:15pm

आद्रणीय श्याम नरेन जी प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on December 24, 2013 at 1:14pm

सादर धन्यवाद आदरणीय शिज्जु जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 23, 2013 at 8:59pm

बहुत बढ़िया आदरणीया कल्पना जी बहुत अच्छा गीत लिखा है आपने बहुत बहुत बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on December 23, 2013 at 4:35pm
बहुत सुंदर नवगीत...बहुत-बहुत बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2013 at 4:13pm

आदरणीया कल्पना जी , लाजवाब नवगीत की रचना की है आपने , आपको ढेरों बधाइयाँ ॥

Comment by कल्पना रामानी on December 23, 2013 at 12:05pm

सादर धन्यवाद मीना जी

Comment by Meena Pathak on December 23, 2013 at 12:00pm

बहुत सुन्दर नवगीत आ० कल्पना दी ... बधाई आप को | सादर 

Comment by कल्पना रामानी on December 23, 2013 at 11:47am

सादर धन्यवाद आदरणीय अविनाश जी

Comment by कल्पना रामानी on December 23, 2013 at 11:46am

आदरणीय गोपाल नारायण जी, गीत पसंद कर मनोबल बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by AVINASH S BAGDE on December 23, 2013 at 11:37am

शुभारंभ है नए साल का 

कल्पना रामानी के 

नवगीत से......

स्वागत करने डटे हुए हैं,

धूल झाड़कर चौकी मसनद।...मुबारक हो...

कृपया ध्यान दे...

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