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कुछ ऐसे पुकारा तुमने (अन्नपूर्णा बाजपेई)

कुछ इस तरह पुकारा तुमने

कदम भी मेरे लगे बहकने 

कुछ इस .........

दामिनी दमक उठी नैनो मे

सरगम छनक उठी साँसों मे

हृद वीणा सी  झंकृत कर दी

जागे से लगने लगे सपने 

कुछ .......................

अन्तर्भावों की सुरवलियों मे

उद्गारों की हारावलियों मे

शब्द सुशोभित सज्जित कर दी

मन-कानन सब लगे महकने 

कुछ .....................

अप्रकाशित एवं मौलिक

 (संशोधित रचना)

 

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on December 31, 2013 at 1:02pm

आदरणीय सौरभ जी एवं आदरणीय बृजेश जी आपके कथन को ध्यान मे रखते हुए रचना मे कुछ संशोधन किए है आशा है अब आपको रचना पसंद आएगी । सादर !

Comment by annapurna bajpai on December 31, 2013 at 1:00pm

प्रिय महिमा बहुत आभार आपका । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 12:22am

भाई बृजेश जी के कहे से मैं सहमत हूँ. सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 25, 2013 at 9:59pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी बहुत ही सुंदर प्रस्तुति .. हार्दिक बधाई आपको  सादर 

Comment by बृजेश नीरज on December 25, 2013 at 7:54pm

अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!

शायद आपने गीत लिखने का प्रयास किया था लेकिन आपने पर्याप्त समय रचना को नहीं दिया!

सादर!

Comment by annapurna bajpai on December 25, 2013 at 6:17pm

आ0 अरुण जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on December 25, 2013 at 6:16pm

आ0 कुंती दीदी आपको रचना अच्छी लगी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on December 25, 2013 at 6:15pm

आदरनीय विजय निकोर जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 25, 2013 at 12:48pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी बहुत ही सुन्दर प्रेम पगी रचना बधाई स्वीकारें.

Comment by coontee mukerji on December 24, 2013 at 10:39pm

बिजली सी चमक उठी नैनो मे

सरगम सी बज उठी साँसों मे

मानो हृदय की वीणा झंकृत कर दी......क्या बात है अन्नपूर्णा जी.मन बाग- बाग हो गया.

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