22- 1212- 1122
हर रात ख़्वाब के मैं सफ़र में
इक सिर्फ तुझको देखूँ डगर में
कुछ आज मखमली सी लगी धूप
क्या बात है न जाने सहर में
अंगारों पे चला मैं सहम के
इक हौसला भी था मेरे डर में
यूँ हैरतों से देखे मुझे लोग
है मेरा नाम आज खबर मे
हर शै पे हर मुकाम पे तू थी
तन्हा हुआ न तेरे नगर में
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अभिनवजी आपका आभार
आदरणीया किरण जी आपका आभार
आदरणीय शिज्जू भाई , हमेशा की तरह आपकी ये ग़ज़ल भी बहुत खूबसूरत है !!!! आपको हार्दिक बधाइयाँ !!!!
अंगारों पे चला मैं सहम के
इक हौसला भी था मेरे डर में.....
यूँ हैरतों से देखे मुझे लोग
है मेरा नाम आज खबर मे......
वाह सर .....खूब कहा अपने ....लाजवाब .....बधाई सर ....
कुछ आज मखमली सी लगी धूप
क्या बात है न जाने सहर में
अंगारों पे चला मैं सहम के
इक हौसला भी था मेरे डर में..... बेहद उम्दा आ. शिज्जू जी हार्दिक बधाई आपको
इस सुन्दर ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई आपको भाई सिज्जू जी। ... सादर
आदरणीय शिज्जू भाई , बेहतरीन गज़ल कही है , आपको तहे दिल से मुबारक बाद !!!!!
आदरणीय शिज्जू जी ..ये ग़ज़ल भी हमेशा की तरह शानदार है ..मेरी तरफ से ढेरों शुभकामनाएं ..हा आदरणीय सिर्फ और सिर्फ अपनी जिज्ञासा वश एक सवाल जो मेरे जेहन में है उसे पूंछने के हिम्मत कर पा रहा हूँ ..
अंगारों पे चला मैं सहम के
इक हौसला भी था मेरे डर में......आपके हौसले के साथ चले हैं उसमे थोडा डर हो सकता है आप सहम के अंगारों पे चलते तो डर में हौसला लगता .थोडा उलझा हुआ हूँ ..शायद मैं गलत ही हूँ ..बस आपकी सोच की आवृति तक आना चाहता हूँ ..कृपया अन्यथा न लीजियेगा ..सादर
अंगारों पे चला मैं सहम के
इक हौसला भी था मेरे डर में...........बहुत खूब.
बधाई शिज्जू जी.
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