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मेरे पीछे रुधन क्यों है
ये अश्कों का बज़न क्यों है
सजाया है जनाजे पर
उधारी का कफ़न क्यों है
कमायी पाप से दौलत
न काफी फिर ये धन क्यों है
बजा कर लाश पर बाजे
जगाने का जतन क्यों है
चले गोरे गये लेकिन
रुआँसा ये वतन क्यों है
हजारों घर जलाकर भी
ये माथे पर शिकन क्यों है
मौलिक एंव अप्रकाशित
उमेश कटारा
Comment
एक अच्छे प्रयास के लिए सादर धन्यवाद, आदरणीय.
यह रुधन और बज़न क्या हैं .. यही समझ में नहीं आया.
सादर
शुक्रिया विजय जी
बहुत सुन्दर गज़ल है।बधाई।
आदरणीय Baidya Nathji आपका आभार
आदरणीया Annapurna bajpai ji आपका आभार
सुंदर गजल , बधाई आपको ।
बजा कर लाश पर बाजे
जगाने का जतन क्यों है...बेमिशाल ख्याल ...उम्दा ...
shukriya Priyanka singh ji apka
बहुत खूब सर……
आदरणीय अखिलेश दुबे जी आभार
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