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हां ठीक था, अर्जुन !

तुम अपने युयुत्सु परिजनों पर

शस्त्र न उठाते i

उन्हें अपने गांडीव की प्रत्यंचा

की सीध में न लाते i

तुम्हारा यह निर्णय ठीक होता या न होता

हां सभी मर जाते तो शवो पर कौन रोता ? 

किन्तु यह क्या---

तुम्हारे शरीरांग कांपे क्यों ?

वदन सूखा क्यों,  दशन चांपे क्यों ?

वेपथु क्यों हुआ, क्यों हुआ लोमहर्षण 

अभी तो शंख घोष था, नही था अस्त्र वर्षण 

तब भी तुम्हारे हाथ से गांडीव खिसका

तुम्हारी र्त्वेचा जली तो दोष  किसका  ?

तुम 'अवस्थानुम न शक्नोमि ' हो गए

तुम्हारा सिर चकराया, शून्य में खो गए

इतने सारे संचारी तुम्हारी पराजय लिखने लगे 

तुम्हे अपने ही भय से अमंगल दिखने लगे     

और भीष्म, द्रोण करते थे गर्व तुम पर 

तुम थे अपने युग के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर 

नहीं होता विश्वास 

जो हो कृष्ण का सखा खास 

वह इतना दुर्बल, इतना शक्तिहीन 

तुममे न आत्मबल न आशा नवीन

तो फिर यह युद्ध जीता किसने?

क्या तुमने नहीं, कृष्ण ने ?

 

 

 

मौलिक/अप्रकाशित

 

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 6, 2013 at 12:01pm

आदरणीय निगम जी

आपके स्नेह से आप्यायित हुआ i

सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 6, 2013 at 12:00pm

मित्र शिज्जू शकूर जी

आपकी बधाई और रचना को मान  देने का  बहुत बहुत आभार i

मै भी आपकी  लेखनी का फैन हूँ i

Comment by Shyam Narain Verma on December 6, 2013 at 11:57am
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.......
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 6, 2013 at 11:56am

आदरणीय सौरभ जी

बस ऐसे ही ज्ञान वर्धन  करते रहिये i

सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 6, 2013 at 11:54am

आदरणीया coontee  मुखर्जी  जी

आपका सादर आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 6, 2013 at 11:52am

प्रिय रामशिरोमणि पाठक जी

आदरणीय सौरभ जी ने युयुत्सु के अनेक अर्थ बता दिए है जिनमे मेरा अर्थ युद्ध के लिए उद्दत से है i  अर्जुन  जहाँ तक अपने परिजनों पर अस्त्र नहीं उठा रहे थे वहा तक तो ठीक था पर -----

आशा है आपका समाधान  हो गया होगा i  आपका आभार i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on December 6, 2013 at 9:26am

युगों से मंथन की निरंतरता के बावजूद प्रश्न अनुत्तरित ही है, उत्कृष्ट रचना हेतु बधाईयाँ............


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 6, 2013 at 7:38am

अच्छी रचना आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर बधाई आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 6, 2013 at 1:37am

युयुत्सु .. युद्ध के लिए उत्सुक, युद्ध हेतु तत्पर ..

युयुत्सु .. धृतराष्ट्र का पुत्र, दुर्योधन का सौतेला भाई.. पाण्डवों का शुभचिंतक, उनका पक्षधर 

Comment by coontee mukerji on December 6, 2013 at 12:50am

बहुत सुंदर प्रश्न उठाया है आपने.विचारणीय है.

कृपया ध्यान दे...

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