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सजदे में चेहरे के तेरे,सर को झुकाना याद है ,
इश्क़ में मेरे तेरा,खुद को भूल जाना याद है |
 
लाने को रूठे हुए, चेहरे पे मेरे इक हंसी,
वो तेरा अजीब-सी शक्लें बनाना याद है |
 
चलते हुए उस राह पर,कांधे पे रखकर सिर मेरे,
उँगलियों में वो तेरा उँगलियाँ फंसाना याद है |
 
बाहों में जो लूँ कभी,नज़रें बचाकर सबसे मैं,
माँ का लेके नाम वो तेरा भाग जाना याद है |
 
मुफ़लिसी के उन दिनों में,किताबें खरीदने को मेरे,
वो तेरा घर ख़र्च से पैसे बचाना याद है |

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Comment by Veerendra Jain on January 23, 2011 at 3:04pm
Bhaskar ji aur Arun ji... protsahan ke liye bahut bahut dhanyawad....
Comment by Abhinav Arun on January 21, 2011 at 12:34pm
अच्छे शेर बन पड़े हैं और खूबसूरत गज़ल के लिये बधाई स्वीकारें !!
Comment by Bhasker Agrawal on January 20, 2011 at 4:26pm
चलते हुए उस राह पर,कांधे पे रखकर सिर मेरे,
उँगलियों में वो तेरा उँगलियाँ फंसाना याद है..........वाह क्या कमाल लिखा है
Comment by Veerendra Jain on January 20, 2011 at 3:50pm

Vivek ji... bilkul sahi kah aapne...us terz per fit baith rahi hai ye gazal...

hausla afzai ke liye bahut bahut dhanyawad...

Comment by Veerendra Jain on January 20, 2011 at 3:49pm
Raju ji , Ashish ji... bahut bahut aabhar..
Comment by आशीष यादव on January 20, 2011 at 12:32pm
वाह वीरेंदर सर, एक मासूमियत भरी ग़ज़ल बहुत अच्छा लगा पढ़ कर|
Comment by विवेक मिश्र on January 20, 2011 at 12:44am

Chupke-chupke raat din aansoo bahaana yaad hai--

hum ko ab tak aashiqi ka wo zamaana yaad hai--

 

iski tarz pe bani ye ghazal, behad khoobsoorat hui hai. Har ek sher mein azeeb si maasoomiyat hai. bus 'waah-waah' hi niklta hai. hardik badhai.

 

Comment by Raju on January 19, 2011 at 2:43pm
bahut hi sunder kavita likhi hai aapne .............. bahut bahut badhai ho aapko

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