For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दीवार

 

मैं जानता हूँ
तुम्हें उस दीवार से डर लगने लगा है,
दीवार, जो तुम्हारे और तुम्हारे अपनों के बीच
समय ने खड़ी कर दी है.
उठो,
उस दीवार से ऊपर उठो
नहीं तो सुबह औ’ शाम
उसकी लम्बी होती छाया
तुम्हें लील लेगी.

 

उस पार देखने के लिये
ऊपर उठना पड़ेगा,
उस दीवार से बहुत ऊपर –
और,
दीवार को नीचा दिखाने के लिये
तुम्हें नीचे आना पड़ेगा,
उस ज़मीं पर
जहाँ तुम्हारे अपने
तुम्हारी प्रतीक्षा में हैं.

 

अगर सिर्फ़ सोचते रहोगे
दीवारें खड़ी होती जाएँगी
तुम्हारे चारों ओर
नज़दीक – और नज़दीक
चुन दिये जाओगे
तुम अपने ही सोच द्वारा
रंग, जाति, भाषा और धर्म के
भंगुर ईंटों के बीच,
हमेशा के लिये.
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 689

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on November 14, 2013 at 5:54pm

वाह! अदभुत! सच ही, कितने टुकड़ों में बंटा है आज आदमी. ये विभाजन हमें अलग-थलग करता जा रहा है. इस स्थितियों को जो सुन्दर शब्द मिले हैं कि बस बारबार पढ़ते ही जानो का मन होता है! आपको हार्दिक बधाई!

सादर!

Comment by Sushil.Joshi on November 14, 2013 at 5:03am

बहुत ही खूबसूरत रचना है आ0 शर्दिन्दु जी..... हार्दिक बधाई...

Comment by बृजेश नीरज on November 13, 2013 at 11:40pm

वाह! तमाम विसंगतियों के बीच भी जो जिजीविषा आपकी रचनायें जीती हैं वह अतुलनीय है!

इस सुन्दर अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Amod Kumar Srivastava on November 13, 2013 at 10:08pm

वाह ... सुंदर... एक लाजवाब रचना के लिए बधाई स्वीकार करें आ0 शरदिंदु जी ... एक ऐसी अभिव्यक्ति जो दिल को छु गई .... धन्यवाद आपका ..... 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 13, 2013 at 10:45am

मैं जानता हूँ
तुम्हें उस दीवार से डर लगने लगा है,
दीवार, जो तुम्हारे और तुम्हारे अपनों के बीच
समय ने खड़ी कर दी है.

सच! इन्सान लम्बे समय तक अपने स्वार्थ की ईंटों व्  असुरक्षित दूरियों  के गारे से, रिश्तों के मध्य एक अनचाही दीवार खड़ी कर लेता है, अगर सही समय पर निस्वार्थ भावनाओं से उस दीवार को गिराया न जाय तो सुबह से दोपहर तक, फिर दोपहर से शाम तक किसी न किसी को उसकी परछाई में रहना ही पड़ता है, शायद इसी तरह निर्मल हवाओं का झोका भी बट कर रह जाता है..

बहुत ही सुंदर भाव की सन्देशप्रद रचना पर हृदय से बधाई स्वीकारें आदरणीय शरदिंदु जी

Comment by vijay nikore on November 13, 2013 at 4:59am

सुन्दर शब्दों  से जड़े भाव , कविता को अनुपम बनाते हुए पाठक के दिल में पसर जाते हैं !

इस संदेशपरक रचना के लिए ढेर सराहना स्वीकारें।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on November 13, 2013 at 3:00am

आदरणीया गीतिका जी, आप संवेदनशील रचनाकर्मी हैं इसीलिये मेरी इस रचना का तत्व आपसे छुपा नहीं रहा. विद्वत प्रतिक्रिया के लिये आभार. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on November 13, 2013 at 2:56am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी, आपके सहज उच्छ्वास से स्पष्ट है कि मेरी रचना ने आपके अंतर्मन को स्पर्श किया है...मेरे लिये इससे बढ़कर और क्या हो सकता है! आप लखनऊ वासी हैं, मैं भी. निकट भविष्य में आपसे बहुत कुछ सीखने की इच्छा रखता हूँ. स्नेह बनाए रखें. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on November 13, 2013 at 2:49am

आदरणीया प्राची जी, आपने जिस तन्मयता से मेरी रचना पढ़ी है उसीसे मैं धन्य हो गया. आपने जो परिवर्तन/संशोधन किये हैं वे सर्वथा  उचित हैं. प्रोत्साहन और ज्ञानवर्धन के लिये सदा आभारी रहूंगा. सादर.

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on November 12, 2013 at 11:56pm

आदरणीय रचना बहुत सार्थक है, पर क्या ये दीवार सिर्फ और सिर्फ समय द्वारा खड़ी की गयी है। यह प्रश्न इस कविता को पढने के बाद मेरे अंतर्मन में गूंज रहा है। अगर समय मिले तो अवश्य मार्गदर्शन करें। हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
6 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
6 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
6 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
7 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
12 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service