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ग़ज़ल - चाँदनी छिटकी हुई पर मन मेरा खामोश है

चाँदनी छिटकी हुई पर मन मेरा खामोश है।

बेखबर इस रात में सारा जहाँ मदहोश है।

वक्त आगे भागता, जम से गये मेरे कदम,
हाँ, सहारा दे रहा तन्हाई का आगोश है।

हँस रहा चेह्रा मेरा तुम तो बस इतना जानते,
क्योंकि गम दिल संग सीने में ही परदापोश है।

माँगता मैं रह गया, दे दो बहारों कुछ मुझे,
अनसुना कर बढ़ गईं, इसका बड़ा आक्रोश है।

अब कहाँ रौनक बची "गौरव" उमंगों की यहाँ,
घट रहा साँसों सहित धड़कन का पल-पल जोश है।

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 28, 2013 at 6:51pm

आदरणीय सौरभ सर, काफी दिन बाद ओबीओपर आ रहा हूँ। आपके अनुमोदन से रचनापर की गई मेहनत सार्थक प्रतीत हो रही है और आपके सुझावों ने तो सदा मार्गदर्शन किया है। हृदय से आभार आपका।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 14, 2013 at 12:47am

इस ग़ज़ल के लिए बधाई, भाई. 

सोच अपनी-अपनी, ख़याल अपना-अपना. 

ग़ज़ल अच्छी हुई है.

वैसे अब ग़ज़लियत पर भी ध्यान दिया करें.

शुभेच्छाएँ

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 12, 2013 at 6:21pm

आपका स्वागत है आदरणीया गीतिका दीदी, आपके सुझाव से पूरी तरह सहमत हूँ। सराहना हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद...........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 12, 2013 at 6:20pm

आदरणीय आशुतोष जी, दिल से आभार आपका, आपकी प्रतिक्रिया अत्यंत स्नेहपूर्ण एवं उत्साहवर्धक है। स्नेह बनाए रखें। सादर.......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 12, 2013 at 6:19pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीया राजेश जी, शब्द को अभी एडिट कर देता हूँ.......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 12, 2013 at 6:17pm

//बतौर पाठक मुझे उम्मीदें ज़्यादा है//

आदरणीय शिज्जू जी, ये मेरे लिए बहुत प्रसन्नता की बात है, आपकी इस एक पंक्ति ने काफी प्रेरित किया है, दिल से पुनः आभार आपका.......

Comment by वेदिका on November 12, 2013 at 5:46pm

बहुत खूब गज़ल हुयी है अजीतेंदु भैया| एक बात कहती हूँ //घट रहा साँसों सहित धड़कन का पल-पल जोश है।// सकारात्मक्ता का पुट रखिए आखिर में| 

शुभकामनायें !!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 12, 2013 at 4:36pm

कुमार जी ...उमंगें बरक़रार रखें ,, धडकनों के रफ़्तार घटने न पाए ..जब आप दूसरों के धड़कन बढाने का हुनर रखते हों ..इस रचना पर सादर बधाई के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 12, 2013 at 9:14am

चेह्रा २२ सही है बस शब्द ठीक करलें मात्राएँ सही हैं आपकी ---दूसरे बसितना अलिफ् वस्ल के नियमानुसार सही है ,पहले इस पर ध्यान नहीं गया अतः ये शेर सही है बस चेहरा शब्द ठीक करलें,पुनः इस ग़ज़ल पर बधाई आपको  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 12, 2013 at 8:18am

आदरणीय मेरा इशारा शिल्प नहीं बल्कि ग़ज़ल के असर की तरफ है, बतौर पाठक मुझे उम्मीदें ज़्यादा है, ग़ज़ल आपके दिल से निकली तो पाठक के दिल तक पहुँचना चाहिये चूँकि मैं आपकी कुछ अच्छी ग़ज़लें पढ़ चुका हूँ उनकी  तुलना में इस ग़ज़ल से निराशा हुई.

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