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"क्यों..भाई, क्या हुआ ? अतिवृष्टि से चौपट हुयी फसल का, मुआवजा दे रही है न राज्य-सरकार ?" रामभरोस ने बड़ी आशाभरी आवाज से पूछा.

"काकाजी..!! दे तो रही थी, पर विपक्ष के नेताओं ने, अगले महीने चुनाव आता देख, चुनाव-आयोग को शिकायत कर स्टे लगवा दिया.. अब देखो क्या होता है ", नितिन ने बड़ी निराशा से कहा.

"अरे बेटा ! सोच रहे थे, कुछ पैसे मिल जाते तो अगली फसल के लिए खाद पानी का जुगाड़ हो जाता, और दीवाली भी मना लेते...", रामभरोस ने कराहते हुए स्वर में कहा..

       जितेन्द्र ' गीत '
  ( मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 13, 2013 at 9:03am

आदरणीय लक्ष्मण जी, हर इन्सान अपने मताधिकार के उपयोग से यह चाहता है की ऐसी सरकार बने जो सभी जन की भलाई का काम करे,  देश,प्रदेश, शहर, और गाँव का विकास करे, न कि स्वयं का, हर धर्म के लोगो को समानता से देखा जावे, परन्तु यहाँ तो जिद्दी बच्चों की तरह झगडा होता है, यह खिलौना तेरा नही तो मेरा भी नहीं,

आपका बहुत बहुत आभार, अपना स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 13, 2013 at 8:52am

यह आपका कहना शत-प्रतिशत सही है, इस स्वार्थ की राजनीति ने किसान ही नही, देश के बेरोजगार, महिलाओं, अलग-अलग धर्म के लोगों, मजदूरों, सरकारी कर्मचारियों सभी को अपनी चपेट में ले रखा है, आप जैसे लघुकथाकार की प्रतिक्रिया पाकर, मेरी रचना धन्य हो गई आदरणीय दीपक जी, अपना स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by Dipak Mashal on October 21, 2013 at 4:18pm


किसान-मजदूर हो चाहे कोई और मेहनतकश इस राजनीति की लपटों से सभी झुलसाए जाते हैं। अपने भविष्य के भले के लिए ये सौ-सौ पेटवाले एक पेटवालों की वर्तमान की रोटी भी छीन रहे हैं। 

लघुकथा इस दशा को अच्छे से दर्शाती है।  बधाई जितेन्द्र भाई 
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 19, 2013 at 10:08pm

आपने रचना व् किसानों के मर्म को छुआ,आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय शुभ्रांशु जी, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 19, 2013 at 9:56pm

आपकी उत्साहबर्धक प्रतिक्रिया हेतु, आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय शुशील जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by Shubhranshu Pandey on October 19, 2013 at 8:05pm

आदरणीय जितेन्द्र जी, किसानों के हालत और हालात को खीच कर आपने सामने रख दिया है. एक एक खुशी पाने के लिये किसानों को तरसना पड़ रहा है. एक मार्मिक कथा. सादर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 19, 2013 at 12:25pm

जन हित में लिए गए फैसले पर राजनीति से न जनता का भला न राज नेताओं को | अब किसान विपक्ष को जिसने सहायता 

पर रोक लगवा दी, वोट क्यों देंगे | थोथी विरोध की राजनीति से किसी का भी भला नहीं होता | सुन्दर सन्देश देती लघु कथा के 

लिए हार्दिक बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 19, 2013 at 11:31am

जी हाँ , आदरणीया राजेश जी, आप बिलकुल सही कह रहीं है, नेताओं को किसी की परेशानी से कोई मतलब न्हीं, उन्हें सिर्फ अपनी रोटी सेंकने से मतलब है, वो कैसे भी सिंकनी चाहिए..बस और कुछ न्हीं !

आपका बहुत बहुत आभार, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 19, 2013 at 11:15am

आपका कहना एकदम सही है आदरणीय गणेश जी, दल के नेता पक्ष में हो या विपक्ष में, मुआवजा की राशी का भार तो किसी न किसी प्रकार से जनता पर ही आना है, उस राशी को सौंप कर हालाँकि कोई अहसान तो न्हीं कर रहे है, पक्षीय दल ,उसमें से कुछ खर्चा पानी भी निकाल ही लेंगे.,. नुकसान तो जनता की होना है, हमारे यहाँ, एक कहावत है की 'सांड से सांड लड़ा,बागुढ़ का घान किया'

आपका बहुत बहुत आभार, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 19, 2013 at 11:02am

आपने सच कहा आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी, किसान पृकृति की मार से परेशान है, उसका परिवार तो अपनी जगह, वो देश की रोटी की भी चिंता में रहता है, उपर से गंदी राजनीति का कहर...परेशानी को ओर बड़ा देती है,

अपना स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

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