For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बड़े जतन से संजोई किताबें 
हार्ड बाउंड किताबें 
पेपरबैक किताबें 
डिमाई और क्राउन साइज़ किताबे 
मोटी किताबें, पतली किताबें 
क्रम से रखी नामी पत्रिकाओं के अंक 
घर में उपेक्षित हो रही हैं अब...
इन किताबों को कोई पलटना नही चाहता 
खोजता हूँ कसबे में पुस्तकालय की संभावनाएं 
समाज के कर्णधारों को बताता हूँ 
स्वस्थ समाज के निर्माण में 
पुस्तकालय की भूमिका के बारे में...
कि किताबें इंसान को अलग करती हैं हैवान से 
कि मेरे पास रखी इन बेशुमार किताबों से 
सज जाएगा पुस्तकालय 
फिर इन किताबों से फैलेगा ज्ञान का आलोक
कि किताबों से अच्छा दोस्त नही होता कोई
इसे जान जाएगी नई पीढी 
वे मुझे आशस्त करते हैं और भूल जाते हैं... 

मौजूदा दौर में 
कितनी गैर ज़रूरी हो गई किताबें 
सस्तई के ज़माने में खरीदी मंहगी किताबें 
बदन पर भले से हों फटी कमीज़ 
पैर को नसीब न हो पाते हों जूते 
जुबान के स्वाद को मार कर 
खरीदी जाती थीं तब नई किताबें 
यहाँ-वहाँ से मारी जाती थीं किताबें 
जुगाड़ की जाती थीं किताबें 
और एक दिन भर जाता था घर किताबों से 
खूब सारी किताबों का होना 
सम्मान की बात हुआ करती थी तब...

बड़ी विडम्बना है जनाब 
डिजिटल युग में सांस लेती पीढ़ी 
किसी तरह से मन मारकर पढ़ती है 
सिर्फ कोर्स में लगी किताबें....
मेरे पास रखी इन किताबों को बांचना नही चाहता कोई 
दीमक, चूहों से बचाकर रख रहे हैं हम किताबें 
खुदा जाने 
हमारे बाद इन किताबों का क्या होगा......

(मौलिक अप्रकाशित)

Views: 682

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on October 19, 2013 at 4:51pm
अनवर भाई , किताबों की उमर आदमी जितनी नहीं होती ,खुदा न खास्ता गर खानदान में दूसरा अनवर पैदा लिया तो वह कितना फक्र महसूस करेगा और फिर किताबें हैं तो यकीन मानिए ये खुद अपनी भूख लोगों में भरती है .
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 2:07pm

बहुत सुन्दर आदरणीय

और उस पर  आदरणीय गणेश सर के चमचमाते अशआर ग़ज़ब है

बहुत बहुत बधाई हो आपको

Comment by Sushil.Joshi on October 19, 2013 at 7:36am

सुंदर भावभिव्यक्ति है आदरणीय अनवर भाई..... हार्दिक बधाई....


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 18, 2013 at 8:58pm

बड़े ही जतन से सजोई किताबें,

ये मोटी किताबें वो पतली किताबें । 

कोई अब न चाहे किताबें पलटना,

उपेक्षित पड़ीं हैं ये नामी किताबें । 

आदरणीय सुहैल साहब किताबों की अपनी अलग दुनिया है, ये तो थाती हैं जो हम अगली पीढ़ी को दे सकतें हैं । बहुत ही खुबसूरत भाव । बधाई इस भावाभिव्यक्ति हेतु । 

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 18, 2013 at 6:17pm

एकदम हट के, शानदार विषय पर लिखी गयी अत्यावश्यक कविता.... आभार ऐसी सोच के लिए !!!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 18, 2013 at 6:07pm

आपकी रचना बांचकर मै भी गहरे सोंच में पद गया | मैंने पिताजी की और मेरी खूब संजोकर राखी गई, शैक्षणिक, साहित्यिक किताबे, धार्मिक कल्याण आदि नियमित पत्रिकाए जब हर साल छंट कर रद्दी अलग करता हूँ तो घर में सब कहते है, क्यों जगह रोक रहे हो |

बहुत सी पुस्तके लोगो को दे देता हूँ | पर इस डिजिटल युग में अब पुस्तकालय भी तो डिजिटल हो रहे है | विचारणीय रचना हेतु 

बधाई 

Comment by coontee mukerji on October 18, 2013 at 11:16am

किताबों की उमर कभी कम नहीं होती है आज नहीं तो कल इसे पढ़ने वाले मिल ही जाएँगे.शुभकामनाएँ सहित.

कुंती.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 18, 2013 at 8:27am

आदरणीय अनवर जी, आपकी पीड़ा में अपनी पीड़ा नजर आ गई. बहुत सी अच्छी-अच्छी और कीमती किताबें मित्र-गण ले गये. मार्मिक रचना हेतु बधाई............

Comment by Abhinav Arun on October 18, 2013 at 5:37am

अपना दर्द याद हो आया भाई अनवर जी ..मेरे कितने मीन कांफ ...टॉलस्टॉय ...लेनिन ...गोर्की ..किट्स...और चैटर्ली...सुभाष ...मशुशाला ..कामायनी ....सोनभद्र के जंगल में बने बिजली बोर्ड के क्वार्टरों के दीमकों की मीमांसा शांत करने में अपना अस्तित्व खो बैठे ...खैर किताबों की सार्थकता उनको पढ़े जाने में है ..एक ने भी पढ़ा तो उनका जीवन बढ़ा ..किताबे है और रहेंगी ....अपने दर्द में मुझे हमदर्द समझें !! साधुवाद इस अभिवक्ति के लिए !!

Comment by वीनस केसरी on October 18, 2013 at 2:38am

मार्ग खर्च मैं वहन करूँगा ...
सब किताबें मेरे घर भेजिए
(बुक पोस्ट से ५ किलो से कम का पैकेट बना कर भेजिए, १ पैकेट का खर्च मात्र ७० रुपये लगेगा)

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
19 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
22 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
22 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
22 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service