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ग़ज़ल- सारथी || ज़िक्र कुछ यार का किया जाये ||

ज़िक्र कुछ यार का किया जाये

ज़िन्दगी आ जरा जिया जाये /१ 

हो चुकी हो अगर सजा पूरी

दर्दे दिल को रिहा किया जाये /२ 

चाँद छूने के ही बराबर है

मखमली हाथ छू लिया जाये /३ 

ज़ख़्म ताजा बहुत जरुरी है

चल कहीं दिललगा लिया जाये /४ 

वक़्त ने मिन्नतें नहीं मानी

माँ को खुलके बता दिया जाये /५ 

हसरतें ईद की अधूरी हैं

ख़ामुशी से जता दिया जाये /६ 

चाँद से कल मेरी सगाई है

रकमें मेहर ज़मीं दिया जाये /७   

गुफ़्तगू धड़कनों की जारी है

यार शम्मा बुझा दिया जाये /८ 

कब तलक ‘सारथी’ सुनाएगा

यार मुझको दफा किया जाये /९ 

.............................................
*सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित 
 बह्र :  २१२२ १२१२ २२ 

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 7, 2013 at 8:38pm

क्या बात है जनाब, सभी शेर एक पर एक हुए हैं, मुझे यह ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी, बहुत बहुत बधाई श्री बैद्य नाथ जी । 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 7, 2013 at 7:01pm

ज़िन्दगी आ जरा पिया जाये // ज़िन्दगी आ जरा जिया जाये |..  या....   ज़िन्दगी आ तुझे  जिया जाये |

अच्छी गज़ल बधाई बैद्यनाथजी। 

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 7, 2013 at 6:26pm

लाजवाब.........बेमिशाल...........कमाल..............धमाल..............//.......ग़ज़ल.......!!!!!!!!!!

Comment by नादिर ख़ान on October 7, 2013 at 5:56pm
सभी शेर बहुत उम्दा लगे
बहुत खूब सारथी जी
आप तो छा गए ।
Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 7, 2013 at 5:45pm

ग़ज़ल बहुत अच्छी बन पड़ी है , कई अशरार बहुत भाये है ! बधाई आपको 

Comment by Abhinav Arun on October 7, 2013 at 3:43pm

ज़िक्र कुछ यार का किया जाये
ज़िन्दगी आ जरा पिया जाये |

हो चुकी हो अगर सजा पूरी        
दर्दे दिल को रिहा किया जाये

चाँद छूने के ही बराबर है
मखमली हाथ छू लिया जाये |

.............क्या ही खूब अशार हुए हैं वाह सारथी जी बहुत बहुत मुबारकबाद जनाब !!

Comment by शकील समर on October 7, 2013 at 2:51pm

पूरी गजल बेहद उम्दा है आदरणीय सारथी जी.......विशेषकर यह शेअर काफी भाया...........

हो चुकी हो अगर सजा पूरी        
दर्दे दिल को रिहा किया जाये |

Comment by coontee mukerji on October 7, 2013 at 2:29pm

बहुत सुंदर गज़ल है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 7, 2013 at 1:48pm

सारथी की ग़ज़ल बहुत भायी

ऐसा एलान कर दिया जाये !!!!!!

लाजवाब आदरणीय सारथी भाई , बहुत क़ामयाब ग़ज़ल कही !! बधाई !!

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 7, 2013 at 1:09pm


      वाह!!  क्या बात है सारथी  जी ? बहुत खूब ग़ज़ल लिखी है आपने । एक-एक  शेर वजनदार है इसका । " हो चुकी हो गर सजा पूरी ,दर्दे दिल को रिहा किया जाए " ।  बहुत सुन्दर । बहुत बहुत बधाई । 

 

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