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फूल बागो में खिले --- गजल

फूल बागों में खिले ये सबके मन को भाते है
मंदिरों के नाम पर ये रोज तोड़े जाते है .

फूल माला में गुथे या केश की शोभा बने
टूट कर फिर डाल से ये फूल तो मुरझाते है

फूल का हर रंग रूप तो सुरभि भी पहचान है
फूल डाली पर खिले तो भौरों को ललचाते है

फूल चंपा के खिले या फिर चमेली के खिले
फूल सारे बाग़ के मधुबन को ही महकाते है

भोर उपवन की देखो तितली से ही गुलजार हुई
फूलों का मकरंद पीने भौरे भी  मंडराते है

पेड़ पौधो से सदा हरियाली जीवन में रहे
फूल पत्ते पेड़ की मंजुलता को दरसाते है

---- शशि पुरवार

मौलिक और अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 5, 2013 at 10:08pm

आदरणीय शशि जी , सुन्दर गज़ल के लिये  आप को हार्दिक बधाई !!!!

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 5, 2013 at 9:48pm

सच में हम कुदरत  की इस नेमत को बहुत नष्ट करते है ! बहुत अच्छा सन्देश इस रचना के माध्यम से ! बधाई आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:10pm

बढ़िया ग़ज़ल आदरणीया शशिजी बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

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