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हल्की-सी उदासी ...विजय निकोर

हल्की-सी उदासी

 

भावों की आहट

हल्की-सी उदासी

तुम्हें उदास देख कर ...

 

हल्की-सी उदासी

अँधेरे की थाहों में तुम्हें

कुछ टटोलते देख कर...

 

कुछ पहचानी कुछ अनजानी

तुम्हारी चुप्पी भी

चुभती है बहुत ...

 

सिन्दूर जो तुम्हारी मांग में

सजने को था

बिखरा पड़ा ...

 

सहसा हिल जाता है दिल

सोचते, ख़्यालों के कंगूरों पर कहीं

अकेली, तुम रो तो नहीं रही ...

 

तुम्हारी सोच

भयावना रूप लिए

कलेजे को चीर तो नहीं रही ...

 

मैं भी बेकाबू

तुम्हारी उदासी से उपजा दर्द

तुमसे कह नहीं पाता ...

 

एक हल्की-सी उदासी

तुम्हारी कविताओं के पन्नों से

उभर-उभर पसर जाती है ...

 

और एक और हल्की-सी उदासी

पुरानी सलोनी बातों से भीगी

उलझनों के ढाँचे में .. मुझको .. बस ...

 

यह कितनी हल्की-हल्की उदासियाँ

मेरे थरथराते ओंठों पर एक संग

सुनो, बहुत भारी हो गई हैं आज ...

 

... कहाँ हो तुम ?

.

विजय निकोर                           

४ अक्तूबर, २०१३

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

 

 

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Comment

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Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 5, 2013 at 10:51pm

तुम्हारी चुप्पी भी

चुभती है बहुत ...

 

सुन्दर कविता आदरणीय विजय निकोर जी !

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 5, 2013 at 9:30pm

मन जब उदास होता है तो ऐसे सुन्दर भाव जो बने है बहुत ही काबिले तारीफ़ है ! हार्दिक बधाई !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:25pm

बहुत बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय विजय सर, इस भाव पूर्ण रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें

Comment by Priyanka singh on October 5, 2013 at 7:33pm

बहुत सुन्दर समझा आपने भावों को और बहुत सुन्दरता से लिखा भी है ....प्रशंसा के लिए शब्द नही मिल रहे है सर ....बहुत बहुत लाजवाब .....बधाई सर 

Comment by रविकर on October 5, 2013 at 5:56pm

भाव पूर्ण-
आभार आदरणीय-

Comment by Sushil.Joshi on October 5, 2013 at 2:18pm

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है आदरणीय विजय निकोर जी.... अपनों के दर्द का सुंदर चित्रण..... बधाई हो आपको..

Comment by Abhinav Arun on October 5, 2013 at 2:01pm

सहसा हिल जाता है दिल
सोचते, ख़्यालों के कंगूरों पर कहीं
अकेली, तुम रो तो नहीं रही ...
 
          .. आदरणीय श्री विजय जी बहुत ही भावपूर्ण और सशक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें , अंतर्मन मे भाव बखूबी निखर कर पाठक को आप्लावित कर रहे हैं ..बेमिसाल रचना वाह !!

Comment by Sachin Dev on October 5, 2013 at 1:38pm

आदरणीय विजय निकोर जी बेहतरीन रचना पर हार्दिक बधाई आपको ! 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 5, 2013 at 12:12pm

सुन्दर संवेदनशील भाव अभिव्यक्ति के लिए बधाई आदरणीय श्री विजय निकोरे जी 

Comment by D P Mathur on October 5, 2013 at 11:46am

आदरणीय विजय निकोर सर नमस्कार, आपकी भावुक करने वाली रचना को पढ़कर मन सच में एक क्षण के लिए शांत हो गया बहुत ही भाव भरी रचना है इसके लिए आपको अनेकों बधाई ।

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