हल्की-सी उदासी
भावों की आहट
हल्की-सी उदासी
तुम्हें उदास देख कर ...
हल्की-सी उदासी
अँधेरे की थाहों में तुम्हें
कुछ टटोलते देख कर...
कुछ पहचानी कुछ अनजानी
तुम्हारी चुप्पी भी
चुभती है बहुत ...
सिन्दूर जो तुम्हारी मांग में
सजने को था
बिखरा पड़ा ...
सहसा हिल जाता है दिल
सोचते, ख़्यालों के कंगूरों पर कहीं
अकेली, तुम रो तो नहीं रही ...
तुम्हारी सोच
भयावना रूप लिए
कलेजे को चीर तो नहीं रही ...
मैं भी बेकाबू
तुम्हारी उदासी से उपजा दर्द
तुमसे कह नहीं पाता ...
एक हल्की-सी उदासी
तुम्हारी कविताओं के पन्नों से
उभर-उभर पसर जाती है ...
और एक और हल्की-सी उदासी
पुरानी सलोनी बातों से भीगी
उलझनों के ढाँचे में .. मुझको .. बस ...
यह कितनी हल्की-हल्की उदासियाँ
मेरे थरथराते ओंठों पर एक संग
सुनो, बहुत भारी हो गई हैं आज ...
... कहाँ हो तुम ?
.
विजय निकोर
४ अक्तूबर, २०१३
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
तुम्हारी चुप्पी भी
चुभती है बहुत ...
सुन्दर कविता आदरणीय विजय निकोर जी !
मन जब उदास होता है तो ऐसे सुन्दर भाव जो बने है बहुत ही काबिले तारीफ़ है ! हार्दिक बधाई !
बहुत बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय विजय सर, इस भाव पूर्ण रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें
बहुत सुन्दर समझा आपने भावों को और बहुत सुन्दरता से लिखा भी है ....प्रशंसा के लिए शब्द नही मिल रहे है सर ....बहुत बहुत लाजवाब .....बधाई सर
भाव पूर्ण-
आभार आदरणीय-
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है आदरणीय विजय निकोर जी.... अपनों के दर्द का सुंदर चित्रण..... बधाई हो आपको..
सहसा हिल जाता है दिल
सोचते, ख़्यालों के कंगूरों पर कहीं
अकेली, तुम रो तो नहीं रही ...
.. आदरणीय श्री विजय जी बहुत ही भावपूर्ण और सशक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें , अंतर्मन मे भाव बखूबी निखर कर पाठक को आप्लावित कर रहे हैं ..बेमिसाल रचना वाह !!
आदरणीय विजय निकोर जी बेहतरीन रचना पर हार्दिक बधाई आपको !
सुन्दर संवेदनशील भाव अभिव्यक्ति के लिए बधाई आदरणीय श्री विजय निकोरे जी
आदरणीय विजय निकोर सर नमस्कार, आपकी भावुक करने वाली रचना को पढ़कर मन सच में एक क्षण के लिए शांत हो गया बहुत ही भाव भरी रचना है इसके लिए आपको अनेकों बधाई ।
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