For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐ खुशी तूने अगर मुझको पुकारा ही न होता - शिज्जु शकूर

बह्रे रमल मुसम्मन सालिम(2122 2122 2122 2122)

संग तेरे मैंने कोई पल गुज़ारा ही न होता

ऐ खुशी तूने अगर मुझको पुकारा ही न होता

 

तूने ऐ जज़्बा-ए-दिल मुझको सँवारा ही न होता

आइने में लफ़्ज़ के तुझको उतारा ही न होता

 

रह गया था मैं कहीं खो कर जहां की वुसअतों मे                        वुसअत= व्यापकता

गर मुहब्बत की न होती तो सहारा ही न होता

 

रात की जल्वागरी होती अधूरी रौनकें भी

चाँद की जो बज़्म में कोई सितारा ही न होता

 

इस ज़माने में बने मा'बूद इंसां लूटते हैं                                  मा'बूद =जिसकी इबादत की जाये

सच न कहता मैं तो दुश्मन शह्र सारा ही न होता

 

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 899

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 7, 2013 at 2:56pm

आदरणीया डॉ प्राची जी आपका आभार जो आपने मेरी रचना को मान दिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 7, 2013 at 2:54pm

भाई आशीष जी हौसला अफ़्ज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 6, 2013 at 3:32pm

हार्दिक बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर आ० शिज्जू जी 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 5, 2013 at 10:20pm

संग तेरे मैंने कोई पल गुज़ारा ही न होता

ऐ खुशी तूने अगर मुझको पुकारा ही न होता ||

वाह, क्या बात है...

बढ़िया ग़ज़ल भाई Shijju Shakoor  जी !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:41pm

आदरणीय बृजेश जी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:40pm

भाई सचिन जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:40pm

भाई जितेन्द्र जी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:39pm

आदरणीया कुन्ती जी रचना के अनुमोदन के लिये आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:38pm

आदरणीय सौरभ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:37pm

आदरणीय वीनसजी रचना के अनुमोदन के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ स्नेह बनाये रखें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service