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ग़ज़ल - कुर्बतों की बात आखिर क्यों करें

2122 2122. 2122. 212

खो गई है प्यार की पतवार लगता है यही
नाव अपनी पास ही मझधार लगता है यही

कुर्बतों की बात आखिर क्यों करें हम बोलना
कर रहे हैं मौत का व्यापार लगता है यही

रोज ही गढ़ते कहानी बारहा बढ़ते कदम
दिख गया कोई नया बाजार लगता है यही

मौत का मंजर कहीं रस्ते न आ जाए यहाँ
देखकर तैयारियाँ खूँखार लगता है यही

जुल्मतों नें घेर ली है राह चारो ओर से
हाथ में है सो गई तलवार लगता है यही

जीत का आलम कभी दीदार था हमने किया
हाथ में टिकते नहीं हथियार लगता है यही

आँख नम है कोर पर कैसी उदासी छोड़ दो
आँसुओं में बह गया दीदार लगता है यही

पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 588

Comment

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Comment by Poonam Shukla on October 8, 2013 at 10:14am
अब समझ आ गया गिरिराज जी ,फिर बदलाव करूँगी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 7, 2013 at 9:07pm

आदरणीया , पूनम जी , मतले के दोनो मिसरों के  सिवाय अगर अन्य शेरों मे रदीफ की आखरी मात्रा दोनो मिसरों मे आये तो उसे दोष माना जाता है !! लगता है यही ,  आपने रदीफ लिया है , वार , धार पार आदि काफिया है , यानी हर्फे कवाफी आर आ रहा है !! अब बाक़ी शेरों मे या तो आप मिसराये सानी मे काफिया रदीफ का बन्धन निभायेंगे  या दोनो मिसरों मे निभा कर हुस्ने मतला जैसे शेर कहेंगे !! मिसराये उला मे ( पहली लाइन ) के अंत मे  केवल की मात्रा अंत मे नही ला सकते ,तकाबुले रदीफ दोष की स्थिति आती है ! हो सके तो पूरा काफिया रदीफ मिलायें या अंत मे की मात्रा न आने दें , क्यों कि आप रदीफ लगता है यही चुने है ! जिसके अंत मे ई  की मात्रा है !!! 

                           क्या पता  आपको समझाने मे सफल हुआ या नही , पर इससे ज्यादा मै नही जानता !!!! सादर !!!

Comment by Poonam Shukla on October 7, 2013 at 8:42pm
नहीं समझ आ रहा

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 7, 2013 at 6:22pm

आदरणीया , मतला अब सही बह्र में है , बधाई !!! 

तकाबुले रदीफ दोष अभी भी है ,

मौत का मंजर कहीं रस्ते न आ जाए कहीं
देखकर तैयारियाँ खूँखार लगता है यही

आँख नम है कोर पर कैसी उदासी झाँकती
आँसुओं में बह गया दीदार लगता है यही

शब्दों के क्रम या शब्द बदल कर बोल्ड लेटर मे लिखे जगहों से की मात्रा बदल दें , ठीक हो जायेगा !!

Comment by Poonam Shukla on October 7, 2013 at 6:04pm
मैंने कुछ बदलाव किया है ,अगर अभी भी कमी हो तो बताएँ ,सादर ।
Comment by coontee mukerji on October 5, 2013 at 1:11am

बहुत सुंदर.

Comment by वीनस केसरी on October 4, 2013 at 11:14pm

सुन्दर प्रयास है
हार्दिक शुभकामनाएं

Comment by MAHIMA SHREE on October 4, 2013 at 10:30pm

आँख नम है कोर पर कैसी उदासी झाँकती
सावनों में घुल गई है खार लगता है यही... बढ़िया है बधाई आपको

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 4, 2013 at 12:44pm

आदरणीया आपने मतले में ही बहर का निर्वाह नहीं किया है, मतला ही बेबहर हो रहा है साथ ही साथ अंतिम शेर में तकाबुले रदीफ़ का भी दोष है कृपया देख लें. ग़ज़ल पर आपका प्रयास अच्छा है सही दिशा में है सतत प्रयासरत रहें, इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on October 4, 2013 at 8:59am

ग़ज़ल कहने का अच्छा प्रयास हुआ है. आपको हार्दिक बधाई!

बहर के अनुसार ही शब्दों को व्यवस्थित करने का प्रयास करें.

कृपया ध्यान दे...

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