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समय समय की बात है ,देखो बदली रीत !
मौन कोकिला हो गयी ,कौवे गाते गीत !!१

दुबका दुबका सच दिखे ,सहमा सहमा धर्म !
जबसे लोगों के हुए ,उल्टे गंदे कर्म !!२

मेरे प्यारे गाँव की ,बदल गयी तसवीर !
वही नदी है ,नाव है, किन्तु न दिखता नीर !!३

देखो फिर से हो गया ,मुख प्राची का लाल !
किरणों ने कुछ यूँ मला ,उसके गाल गुलाल !!४

तन पर कपड़ों की कमी ,हाड़ कपाती शीत !
बना गरीबों के लिए ,यही दर्द का गीत !!५

लालच कटुता द्वेष की ,फ़ैल गयी है आग !
कम ही दिखता है मुझे ,प्यारा मृदु अनुराग !! ६

स्वार्थ सिद्धि की दौड़ में ,बदला जब इंसान !
शायद तब से ही हुये ,पत्थर के भगवान !!७

*********************************************

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

मौलिक /अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 6:07pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय मिश्र  जी //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 6:07pm

बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी //सादर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 30, 2013 at 2:51pm

वाह भाई वाह दिल खुश कर दिया आपने अप्रितम अप्रितम दोहावली भाई क्या कहने छा गए आप तो दिल से बधाई स्वीकारे भाई इस सुन्दर दोहावली पर.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:58am

क्या बात है भाई साहब इस आधुनिक परिवेश को सार्थक करती रचना के लिए साधुवाद आपको

जय हो

Comment by विजय मिश्र on September 30, 2013 at 11:56am
सुंदर रचना ,
"स्वार्थ सिद्धि की दौड़ में ,बदला जब इंसान !
शायद तब से ही हुये ,पत्थर के भगवान !! " - क्या खूब कहा . बधाई |
Comment by vijay nikore on September 30, 2013 at 4:40am

बहुत सुन्दर दोहे हैं।

हार्दिक बधाई, आदरणीय राम जी।

 

सादर,

विजय निकोर

 

 

Comment by ram shiromani pathak on September 29, 2013 at 10:47am

बहुत बहुत आभार आदरणीया प्राची जी,दोहे आपको प्रभावित किये यह मेरे लिए उपलब्धि है ///स्नेह यूँ ही बनाये रखें //सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 29, 2013 at 10:39am

प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी 

आपकी दोहावली के कथ्य की गंभीरता और संवेदनशीलता प्रभावित करती है 

बहुत सुन्दर दोहे ..हार्दिक बधाई

Comment by ram shiromani pathak on September 29, 2013 at 10:10am

बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मन जी //स्नेह यु ही बनाये रखें //सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 29, 2013 at 9:35am

बहुत सुन्दर भाव रचित दोहे श्री राम शिरोमणि पठाक जी हार्दिक बधाई -

देखो फिर से हो गया ,मुख प्राची का लाल !
किरणों ने कुछ यूँ मला ,उसके गाल गुलाल !! - सुन्दर 

स्वार्थ सिद्धि की दौड़ में ,बदला जब इंसान !
शायद तब से ही हुये ,पत्थर के भगवान !!७ - बहुत खूब 

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