For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- "भूख़ मजबूरी थी,ग़ैरत ना-नुकुर करती रही "

2122 2122 2122 212

भूख़ मजबूरी थी,ग़ैरत ना-नुकुर करती रही

*****************************

तेज़ से भी छटपटाहट तेज़ जब होती रही         

चीख़ दीवारों से टकरा सर कहीं धुनती रही         

 

इक फ़साना अश्क बनके आँख से बहता रहा

और वीरानी उसे खामोश हो सुनती रही

 

रौशनी करने की ठाने,घर के कोने में कहीं          

रात भर कोई शमा ख़ु को कहीं खोती रही        

 

मुख़्तसर अफ़साना मेरी ज़िन्दगी का ये रहा          

हादिसे हँसते रहे र ज़िंदगी रोती रही       

 

इस तरफ था,ख्व़ाब मेरे टूटने का सिलसिला

और फ़ितरत उस तरफ से ख्व़ाब फिर बुनती रही

 

सोचता हूँ पूछ ही लूं,कातिबे तक़दीर से           

कोई दुश्वारी मुझे हर बार क्यूँ चुनती रही 

 

मैं अकेला कब रहा,यादों की पूरी भीड़ थी 

कुछ ख़याल आते रहे तसवीर कुछ बनती रही

 

एक दुविधा थी कहीं पे इसलिये हम रुक गये

भूख़ मजबूरी थी,ग़ैरत ना-नुकुर करती रही                                                    

 

मुख़्तसर--संक्षिप्त

कातिबे तक़दीर---भाग्य लिखने वाला  

ग़ैरत ---स्वाभिमान

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

Views: 855

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2013 at 2:13pm

आदरणीय राज नवादवी भाई गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2013 at 2:12pm

आदरणीय विजय भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली शुक्रिया !!

Comment by राज़ नवादवी on September 16, 2013 at 8:45am

मुख़्तसर अफ़साना मेरी ज़िन्दगी का ये रहा          

हादिसे हँसते रहे र ज़िंदगी रोती रही       

एक दुविधा थी कहीं पे इसलिये हम रुक गये

भूख़ मजबूरी थी,ग़ैरत ना-नुकुर करती रही          

अच्छी ग़ज़ल, अच्छे अशार, मज़ा आया! बधाई हो गिरिराज जी ! 

Comment by vijay nikore on September 16, 2013 at 4:19am

बहुत ही खूबसूरत गज़ल। बधाई, आदरणीय गिरिराज जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by वीनस केसरी on September 16, 2013 at 1:36am

मूल शब्द हादिसः है
हादसा हिन्दुस्तानी ज़बान में खूब इस्तेमाल हो रहा है ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2013 at 10:03pm

आदरणीय बृजेश भाई , गज़ल की सराहना और हौसला अफज़ाई के लिये आपका हर्दिक आभार !! भाई जी गज़ल को आदरनीय वीनस भाई देख चुके हैं , उन्होने हादिसे शब्द के विषय ऐसा कुछ नही कहा है , अगर गलत होता तो वो ज़रूर इंगित करते !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2013 at 9:58pm

आदरणीय बड़े भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!

Comment by बृजेश नीरज on September 15, 2013 at 9:45pm

बहुत ही शानदार ग़ज़ल! दिल को छू गयी. कथ्य की गहरे देखते ही बनती है. आपको ढेरों बधाई.

एक निवेदन जरूर करना चाहूँगा कि मेरे विचार से सही शब्द 'हादसे' है. इस पर जानकारों की राय ले लें.

इस शानदार ग़ज़ल पर एक बार फिर बहुत बधाई!

सादर!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 15, 2013 at 9:30pm

एक शानदार  गजल के लिए हार्दिक बधाई छोटे भाई ।

मुख़्तसर अफ़साना मेरी ज़िन्दगी का ये रहा          

हादिसे हँसते रहे र ज़िंदगी रोती रही ..........  इसे इस गजल का अंतिम शेर होना था।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2013 at 1:52pm

आदरणीय अरुण भाई , हौसला अफज़ाई के लिये  आपका तहे दिल से शुक्रिया !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Admin posted discussions
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
Monday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
Monday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"अच्छे दोहे हुए हैं, आदरणीय सरना साहब, बधाई ! किन्तु दोहा-छंद मात्र कलों ( त्रिकल द्विकल आदि का…"
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service