2122 1212 22
कुछ बहा पर बचा ज़रा भी है
जख़्म लेकिन, कही हरा भी है
जिनको बांटा उन्हें मिला भी पर
प्यार से दिल मेरा भरा भी है
ख़्वाब ताबीर तक कहाँ पहुंचा
थक के हारा, कभी मरा भी है
बात करता है वो महज़ सच की
सरफिरा है मगर खरा भी है
जख़्म तुम सोच के ही दिखलाओ
हाथ निश्तर है ,उस्तरा भी है
ज़िन्दगी एक स्वाद क्या मानी
स्वाद मीठा है चरपरा भी है
कोई कहता मुझे,मै खुश होता
तू कहीं से गज़ल सरा भी है
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अनुराग जी , हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया !!
बहुत ही सुंदर , बात करता है वो महज सच की
सरफिरा है मगर खरा भी है ! दिल को छू गए , हार्दिक बधाई
आदरणीय वीनस भाई , बहुत खुशी हुई ,आपने समय दिया इसके लिए आपका आभार , सराहना के लिए बहु शुक्रिया !! मेरी पहली गज़ल है जिसमे कोई गलती नही निकली , !!
बात करता है वो महज़ सच की
सरफिरा है मगर खरा भी है
जख़्म तुम सोच के ही दिखलाओ
हाथ निश्तर है ,उस्तरा भी है
ये दो अशआर खूब पसंद आए .. ग़ज़ल अपनी रवानी में बहा ला जाती है
मूल शब्द निश्तर अपने प्रचलित रूप नश्तर के साथ अब अधिक सहज लगता है ...मैं हिन्दुस्तानी ज़बान की ग़ज़ल में नश्तर ही प्रयोग करता
आदरणीय विजय भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार
आदरणीय ललित भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली आभार !!
इस सुन्दर गज़ल के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय गिरिराज जी।
अच्छी गजल, सुंदर रचना के लिए बधाई |
आदरणीय जितेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!
जिनको बांटा उन्हें मिला भी पर
प्यार से दिल मेरा भरा भी है........वाह ! बहुत खूब
ज़िन्दगी एक स्वाद क्या मानी
स्वाद मीठा है चरपरा भी है ....... यह शेर बहुत पसंद आया
बढ़िया गजल प्रस्तुति , तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये आदरणीय गिरिराज जी
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