इस नगर में
मेरे कुछ सपने
हुए साकार
और कुछ
बिखरे किरचियाँ बन
पर
इन सपनों की
फ़ेहरिस्त थी लम्बी
इन्हें पूरा करने
जी जान से थी जुटी
कभी
भावुकता में बही
तो कभी
व्यावहारिकता ओढ़ी
कहीं
करना पड़ा संघर्ष
इसके
विद्रोही मोड़ों पर
लेकिन
इस नगर की
एक बात है ख़ास
मुस्कुराहटों में इसने
दिया मेरा साथ
पर एक बात
है इसकी विचित्र
ग़मों में सहारा देने
कोई हाथ भी न उठा
यही
ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव
समझा गए मुझे हर बार
नई सीख नए विचार
विजयाश्री
०५.०७.२०१३
( मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
हार्दिक आभार सुरेन्द्र कुमार शुक्ला जी
एक बात है ख़ास
मुस्कुराहटों में इसने
दिया मेरा साथ
पर एक बात
है इसकी विचित्र
ग़मों में सहारा देने
कोई हाथ भी न उठा
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कोई भी ना उठा हाथ
आदरणीया विजयश्री जी ..जिन्दगी के दोनों पहलुओं को दिखाती सच को बयाँ करती अच्छी रचना जिन्दगी के ये रंग आज कुछ ज्यादा ही दिखते हैं
भ्रमर ५
प्रतापगढ़
हार्दिक आभार राजेश कुमार झा जी
हार्दिक आभार
डॉ प्राची सिंह जी
जितेन्द्र 'गीत ' जी
रविकर जी
हौंसलाअफजाई के लिए शुक्रिया
अभिनव अरुणजी
डॉ आशुतोष मिश्रा जी
विनीता शुक्ला जी
मुक्तछंद में प्राय: रचनाएं अपने आप को ही ढूंढती हुई सी मुझे मिली हैं पर कुछेक इतनी समृद्ध मिली हैं कि छंद का वजन वहां कम पड़ जाता है। आपकी रचना ऐसी ही है । स्पष्ट भाव, स्पष्ट विचार एवं सतत प्रवाह से युक्त अपना उद्देश्य हासिल करती हुई । आपको हार्दिक बधाई इस रचना पर, सादर
उत्तम प्रस्तुति
आभार आदरेया-
बहुत ही प्रभावशाली रचना, बहुत बहुत बधाई, आदरणीया विजयश्री जी
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति आदरणीया विजयाश्री जी
स्वप्नों के पूरा होने, टूटने , मुस्कुराहटों में लोगों का साथ मिलने और मुश्किल वक़्त में अकेले रह जाने ..और इस सबसे सीख लेते आगे बढते हुए व्यक्ति के अनुभवी और मज़बूत बनते जाने को बहुत संवेदनशीलता से अभिव्यक्त किया है
हार्दिक बधाई
ज़िन्दगी की जेद्दोजेहद का जीवंत वर्णन. बधाई आ. विजया जी.
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