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वास्ता बस यूँ कि

यादें आती रहें जाती रहें

इसी बहाने कभी यूँही कह

मुस्कुरा लिया करेंगे

गुज़रती बेहाल सी

रफ़्तार भरी ज़िन्दगी में भी

इसी बहाने कभी यूँही कह

दो घड़ी थम जाया करेंगे

दुखती आँखों पर भी

थोड़ा रहम हो जायेगा

इसी बहाने कभी यूँही कह

आंखे मूंद तुम्हें

देख लिया करेंगे

खोलती नहीं दुपट्टे की

वो गांठ चुभती है जो

ओढ़ने में….इसी बहाने

कभी यूँही कह तुम्हें

महसूस कर लिया करेंगे

मलती हूँ तुम्हारा नाम

हाथ पर अक्सर लिख कर

इसी बहाने तुम्हें यूँही कह

इन हथेलियों में छुपा लिया करेंगे

गला जब रुंध आये

और दम घुटने लगे

बाल्टी भर खुद पर उड़ेल लेंगे

इसी बहाने अब भी

तुम्हारी याद में यूँही कह

हम रो लिया करेंगे

हाँ उम्मीदें ख़त्म नहीं होतीं

कम्बख्त बस यही जिन्दा रखती हैं

चलो खैर इसी बहाने कभी यूँही कह

हम जी भी लिया करेंगे

(मौलिक एवं अप्रकाशित)


.......प्रियंका ''पियू ''

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Comment

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Comment by Priyanka singh on September 4, 2013 at 3:13pm

विजय सर आपकी नज़र और स्नेह का बहुत बहुत आभार .....

Comment by vijay nikore on September 4, 2013 at 1:28am

//खोलती नहीं दुपट्टे की

वो गांठ चुभती है जो

ओढ़ने में….इसी बहाने

कभी यूँही कह तुम्हें

महसूस कर लिया करेंगे

मलती हूँ तुम्हारा नाम

हाथ पर अक्सर लिख कर

इसी बहाने तुम्हें यूँही कह

इन हथेलियों में छुपा लिया करेंगे

गला जब रुंध आये

और दम घुटने लगे

बाल्टी भर खुद पर उड़ेल लेंगे

इसी बहाने अब भी

तुम्हारी याद में यूँही कह

हम रो लिया करेंगे//

 

अति सुन्दर भाव संप्रेषण, आदरणीया।

इतनी अच्छी भावभीनि कविता न जाने पहले क्यूँ और कैसे पढ़ने से रह गई।

 

विजय निकोर

Comment by Priyanka singh on August 3, 2013 at 8:13pm

सौरभ सर, आपकी इस स्नेहिल सराहना से अभिभूत हूं....आप जैसे गुरुजनों के सन्निध्य एवं मार्गदर्शन में सीखना चाहती हूं...कामना है कि भविष्य में भी इसीतरह आपका स्नेह एवं मार्गदर्शन मिलता रहे....!!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 3, 2013 at 3:03pm

नर्म घड़ियों की छुअन की मधुर अनुभूति आगे बने होने का कारण बनती है. जो यथार्थ से भागने का नहीं बल्कि उस यथार्थ को जी सकने लायक होने का रूप देती है. मुलायम भावभूमि के दीवटे में चुपचाप जलती अनुभूतियों की लौ को जिस अपनत्व से रचयिता ने हथेलियों की ओट दी है, वह श्लाघनीय है.

यों,  ऐसे संप्रेषण तनिक और शाब्दिक गठन की अपेक्षा करते हैं. जो अनुभव और सतत लेखन से संभव होते जाते हैं

शुभेच्छाएँ

Comment by बृजेश नीरज on July 31, 2013 at 10:32pm

इस अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई!

//कभी यूँ ही कह तुम्हें//

बार बार //यूँ ही कह तुम्हें// का प्रयोग किया गया है परन्तु मुझे इसका अर्थ स्पष्ट नहीं हो सका। कृपया मार्गदर्शन करें।

Comment by Priyanka singh on July 31, 2013 at 9:16pm

पसंदगी का बेहद शुक्रिया आशुतोष सर जी ....

Comment by Priyanka singh on July 31, 2013 at 9:15pm

राम जी धन्यवाद् ....

Comment by Priyanka singh on July 31, 2013 at 9:14pm

अरुन जी बहुत बहुत शुक्रिया सर ......

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 31, 2013 at 4:41pm

aapke is behtareen rachna kee ye panktiyaan mujhe behad pasand aayeen ..saadar badhayee ke sath ...

Comment by ram shiromani pathak on July 30, 2013 at 10:34pm

बहुत ही सुन्दर भाव आदरणीया बहुत बहुत बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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