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ग़ज़ल - प्यार की बातें करें !!!

(२१२२, २१२२,२१२२,२१२)

नफरतों की बात छोड़ें, प्यार की बातें करें
दुश्मनों को रहने दें, दिलदार की बातें करें ।

तोड़ दें हथियार सारे, फेंक दें तलवार भी
क्या बुरा जो हम कलम की धार की बातें करें ।

'गोधरा' के भूत को फिर याद कर होगा भी क्या
ईद-होली और कुछ त्यौहार की बातें करें ।

है सियासत, खेल-कारोबार है, सब कुछ तो है
मेज पर रक्खे हुए अखबार की बातें करें ।

गाँव कस्बे और फिर इस शहर की बातें हुई
आज छत पर बैठकर संसार की बातें करें ।

दिल लगा फिर भूल बैठे, फिर किसी से दिल लगा
हम कभी तो प्यार के विस्तार की बातें करें । 

- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 6:39pm

बहुत सुंदर गज़ल ,, आपको हार्दिक बधाई आदरणीय आशीष जी 

Comment by वेदिका on July 18, 2013 at 1:55pm

वाह!! बहुत खूबसूरत गजल 

तोड़ दें हथियार सारे, फेंक दें तलवार भी 
क्या बुरा जो हम कलम की धार की बातें करें । ,, इस शेअर पर विशेष दाद कुबुलिये स्नेही आशीष जी! 

Comment by बृजेश नीरज on July 18, 2013 at 1:40pm

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
हम साथियों को भइया अपने आशीर्वाद से क्यों वंचित कर रखा है?

Comment by coontee mukerji on July 18, 2013 at 12:04pm

आपने गजल के माध्यम से कितनी अच्छी बातें कह दी है.

सादर

 कुंती

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 18, 2013 at 11:25am

वाह मित्रवर बहुत ही सुन्दर क्या कहने सभी के सभी अशआर बहुत ही सुन्दर बन पड़े हैं. निम्नांकित अशआर पर विशेष तौर से दाद कुबूल फरमाएं.

तोड़ दें हथियार सारे, फेंक दें तलवार भी
क्या बुरा जो हम कलम की धार की बातें करें । वाह वाह .

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