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!!! जीव-प्रकृति से प्यार करें !!!

जीव-प्रकृति से प्यार करें,
बनकर धरा हितेश!

पहाड़ों की शिखाओं पर
हरियाली से केश
कुछ घुंघराले
कुछ लट वाले
कुछ तने-तने रेश।1

बहे पवन पुरवाई या
पछुवा चले बयार
इठलाती औ
बलखाती ज्यों
झूमें मस्त दिनेश।2

गूंजें वन में कलरव धुन
ठुमरी औ मल्हार
नृत्य उर्वशी
रम्भा करती
किरने अर्जुन वेश।3

तितली-भौरें-पाखी-जन
करें सुमन से नेह
चूम-चूम तन
कण पराग मन
मिटे तमस औ क्लेश।4

के0पी0सत्यम/ मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 10, 2013 at 2:51pm

प्राकृतिक सौंदर्यता के मनोहारी द्रष्यों का सुन्दर वर्णन से मन हर्षित होता है, ऐसे सुंदर रचना हेतु बधाई श्री केवल प्रसाद जी 

Comment by ram shiromani pathak on July 10, 2013 at 2:28pm

तितली-भौरें-पाखी-जन
करें सुमन से नेह
चूम-चूम तन
कण पराग मन
मिटे तमस औ क्लेश।4////////सुन्दरतम 

वाह भाई केवल जी बहुत ही सुन्दर गीत//हार्दिक बधाई आपको 

Comment by राजेश 'मृदु' on July 10, 2013 at 1:41pm

वाह-वाह मित्रवर ये हुई ना बात । ये नवगीत तो मन को झुमा गया, ढेरों बधाईयां आपको

Comment by coontee mukerji on July 10, 2013 at 12:56pm

प्रकृति का मनवीकरण रूप में बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.केवल प्रसाद जी दिन  प्रति  दिन आप की रचना में निखर आ रही है.

सादर

कुंती.

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