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रोया है कोई … नवगीत /वेदिका

घास का इक नर्म 

बिछौना बनाकर 

ओढ़ कर नीले  

गगन की सर्द चादर 

सोया है कोई …

ओस बिखरी है जो 

हरी हरी घास पर 

साँस भर भर आई 

हर साँस पर 

रोया है कोई …. 

कहीं पुरवाइयों में 

ओस की रुलाइयों में 

चूड़ियों सा चटका है 

टूटा, मेरी कलाईयों में 

बिखरा है कोई …

गर्म लहू जमा वह 

या ठंडी बरसात है 

कुहासे का झाग 

या तो चीख की आग

भिगोया है कोई … 

कत्थई निगाहें दौड़ी 

कितने सफेद कोस 

दर्द धूप में उड़ी,नर्म

आसुंओं की ओस 

खोया है कोई …. 

                 गीतिका 'वेदिका' 

 

मौलिक /अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on July 10, 2013 at 2:31pm

आदरणीया वेदिका जी,अतिसुन्दर प्रस्तुति।बधाई स्वीकारें //सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on July 10, 2013 at 1:28pm

बहुत ही शानदार लेखन । अंतिम चार पंक्तियां अत्‍यधिक खूबसूरत हैं

कत्थई निगाहें दौड़ी 

कितने सफेद कोस 

दर्द धूप में उड़ी,नर्म

आसुंओं की ओस 

खोया है कोई ….

आपको ढेरों बधाई इस रचना पर

Comment by coontee mukerji on July 10, 2013 at 1:22pm

 बहुत ही सुंदर नवगीत , बार बार पढ़्ने को दिल चाहे.

सादर

कुंती

Comment by वेदिका on July 10, 2013 at 10:10am

आदरणीय शिज्जू जी! 

आपकी सलाह का बहुत बहुत शुक्रिया, अपने गजल लिखने के लिए प्रेरित किया, मेरे लिए बहुत सम्मान की बात है। 

ख्यालात जरुर ही मै गजल के शिल्प में ढालूँगी!

प्रोत्साहन औए स्नेह यूँ ही बनाये रखिये!!       

Comment by वेदिका on July 10, 2013 at 10:07am

आदरनीय केवल भाई जी!

आदरणीय शौर्य जी! 

बहुत बहुत आभार, रचना कर्म को प्रोत्साहित करने हेतु!!  

Comment by वेदिका on July 10, 2013 at 10:06am

आदरणीया महिमा जी!

आभार आपका आपने रचना पर कृपा दृष्टी की 

//यंहां अगर  साँस की जगह पे आँख लिखा जाए तो कैसा रहे..

 

ओस बिखरी है जो 

हरी हरी घास पर 

आँख  भर भर आई 

हर साँस पर 

रोया है कोई// ,,, निश्चित ही आपका सुझाव सराहनीय है।

किन्तु यहाँ मेरे कहने का उद्देश्य 

"साँस भर भर आई 

हरसाँस पर ",,,,, किन्तु यहाँ मेरे कहने का उद्देश्य है हरसाँस   पर साँस भरने की अतिश्योक्ति से है, हरसाँस एक आंचलिक और प्रचलित  शब्द है! 

आशा है मै अपनी बात रखने में सफल रही 

स्नेह बनाये रखे!!   

 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 9, 2013 at 11:17pm

वेदिका जी यहाँ आपकी आँखें किसी और के लिए अश्क बहा रही हैं, आपकी भावनाएँ दिल को छू गयीं बेहतरीन रचना,
मैं आपको वो चीज़ दे रहा हूँ जो अपने देश में सुलभ है वो है बिन माँगी सलाह, वो ये की इसी विषय पर आप एक ग़ज़ल लिखिए बाखुदा वो भी मर्मस्पर्शी बनेगा.

Comment by Drshorya Malik on July 9, 2013 at 10:31pm

 बहुत बढ़िया ,बधाई स्वीकारें।   सादर, 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 9, 2013 at 10:04pm

आ0 वेदिका जी,    अतिसुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति।   तहेदिल से बधाई स्वीकारें।   सादर, 

Comment by MAHIMA SHREE on July 9, 2013 at 9:46pm

आदरणीया वेदिका जी ..बहुत बढ़िया .. दर्द के एहसास को जीता नवगीत ... बहुत-२ बधाई

 

 

ओस बिखरी है जो 

हरी हरी घास पर 

साँस भर भर आई 

हर साँस पर 

रोया है कोई

 

यंहां अगर  साँस की जगह पे आँख लिखा जाए तो कैसा रहे..

 

ओस बिखरी है जो 

हरी हरी घास पर 

आँख  भर भर आई 

हर साँस पर 

रोया है कोई

 

 

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