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जाने क्यो उदास है

मेरा मन

जाने क्यों निराश है

मेरा मन

जाने क्यों हताश है

मेरा मन

अधरों से फूटते नही बोल

घुटन सी होती है इस मन में

चुभन सी होती है इस तन में

चंचलता से भरा मेरा मन

जाने क्यों उदास है

लगता है ऐसे कोई नही

अपना आस-पास है

अपनों को खोजता ये मन

लिए तड़पन, लिए लगन

आँसूओं की धारा में

गुम-सुम हुआ मेरा मन

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ramkumar Nema on June 29, 2013 at 1:14pm

आदरणीया..प्रग्या जी, मन की व्याकुलता का रचनात्मक चित्रण दिल को छूने वाला है

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2013 at 12:43pm
आदरणीया..प्रग्या जी, बहुत ही सुंदर व मर्मस्पर्शी रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाऐ
Comment by श्रीराम on June 29, 2013 at 12:18pm

sundar hai....

Comment by रविकर on June 29, 2013 at 12:11pm

है उदास दासत्व से, सो आवे ना रास |
है निराश मन सिरफिरा, करता त्रास हताश ||

Comment by रविकर on June 29, 2013 at 12:06pm

क्या बात है --
बढ़िया है आदरणीया-

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