आदि अनादि अनन्त त्रिलोचन ओम नमः शिव शंकर बोलें
सर्प गले तन भस्म मले शशि शीश धरे करुणा रस घोलें,
भांग धतूर पियें रजके अरु भूत पिशाच नचावत डोलें
रूद्र उमापति दीन दयाल डरें सबहीं नयना जब खोलें
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
वाह क्या बात है !
सुंदर शिवस्तुति अरुण
शुभाशीष
वाह! अद्भुत … बहुत ही जिवंत शिवोपासना लिख कर आपने ,, बिलकुल शिव सदृश्य ही दर्शन करा दिए आपने|
श्र्द्धा नत हूँ!.
हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश भाई जी स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.
आभार आदरणीया कुंती मुख़र्जी जी स्नेह बनाये रखिये
हार्दिक आभार आदरणीय रविकर सर जी आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.
अरून भाई लाजवाब! मजा आ गया! मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें!
बहुत सुंदर छ्न्द .
बढ़िया है प्रियवर
खोल गए नयना शिवशंकर तांडव की अब आवत बारी ।
डोल गए गिरि लोल बहे अब, त्रासद से मरते नर नारी ।
आदरणीय अशोक सर अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार आपका आपके कहे का मान रखता हूँ निःसंदेह आपके द्वारा प्रस्तुत अंतिम पंक्ति अत्यंत सुन्दर एवं भावपूर्ण है, इस हेतु मेरी बधाई स्वीकारें. आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
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