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क्या हुआ, कैसे हुआ ..

या हुआ अचानक ..

देखते देखते बदल गया..

स्वयं का कथानक ..

परछईओं ने भी छोड़ दिए ...

अब तो अपना दामन ..

परिंदों ने भी बंद किये हैं ..

स्वयं का कोलाहल..

पहचानती थी वह ईंट भी ..

जो ठोकर खाकर भटक गयी..

पथ पर रहने के बजाए..

पथ का रोड़ा बन गयी..

अभिलाषाओं का कुंदन हुआ..

आशाओं का तुषार पात ..

तड़ित दमकी और गिर पड़ी ..

उठकर देखा तो मौत खड़ी..

उसने भी नकार दिया..

पहचानने से इंकार किया ..

आशाओं को बुझा दिया..

ले जाने से इंकार किया..

सबकुछ बदला बदला है..

सबके बदले तेवर हैं..

अपना कौन.. कौन बेगाना..

जाना कौन.. कौन अन्जाना ..

अब यहाँ नहीं है कोई नायक ..

दिखता नहीं है कोई सहायक ..

क्या हुआ .. कैसे हुआ.. या हुआ .. अचानक ..

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Amod Kumar Srivastava on June 27, 2013 at 10:23am

Saurabh Pandey sir jee... आपके मार्गदर्शन के लिए दिल से आभार .... में कोशिश करूँगा..  धन्यवाद् ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2013 at 6:12pm

आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई, आमोद भाई. रचनाकर्म में शिल्पगत व्यवहार को और साधे जाने की आवश्यकता है.

शुभेच्छाएँ

Comment by Amod Kumar Srivastava on June 26, 2013 at 4:38pm

आदरणीय अमन भाई में ओत प्रोत हूँ आपके स्नेह से ... बहुत बहुत शुक्रिया व आभार ...

Comment by Amod Kumar Srivastava on June 26, 2013 at 4:37pm

आदरणीय  मुकर्जी जी आपका आभार .

Comment by Amod Kumar Srivastava on June 26, 2013 at 4:35pm

 गीतिका 'वेदिका'  जी आपका आभार ..

Comment by aman kumar on June 26, 2013 at 9:42am

अगर शाम हो ,

आप हो सामने अपने ,

आपके मुख से सुने आपकी कविताये ,

पर अभी तक ये भी न हो सका ! 

अब अपने दिल का हाल क्या बताये ! 

आपकी कविता देर से पड़ने को माफ़ी .......

आभार , आपकी तारीफ अब लिख कर नही करूंगा सामने ही बात होंगी !

Comment by coontee mukerji on June 25, 2013 at 5:05pm

मौत जब सामने ताण्डव  नृत्य कर रहे हों , तो कौन अपना कौन पराया ........बहुत अच्छा लिखा है अमोद जी .

Comment by वेदिका on June 25, 2013 at 1:36pm

अंतर्द्वंद में किंकर्तव्यंविमूढ़म को दर्शाते हुए जो मानसकिता बन पड़ती है, चित्रण पर बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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