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खुदा से मिला के चला गया

वो आया था और सच्चाई बता के चला गया,
बुरा ना कहो उसे जो हाथ छुडा के चला गया|

वो भी भला था फ़क्त इक दुआ देके देख लो,
जो मेरी रूह को खुदा से मिला के चला गया|

मैं बादल था बरसना था कहीं खेतों की ज़मीं पे,
वो हवाओं को ही सागर में छुपा के चला गया|

सुना था कहीं इंसान बसते हैं यहीं ज़मीन पे,
वो आईने में मेरा चेहरा दिखा के चला गया|

दम आख़िरी था, मुस्कान चेहरे पे आ ही गयी,
हँसते हुए वो दुनिया को रुला के चला गया|

"मौलिक और अप्रकाशित"

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Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 22, 2013 at 11:46pm

contee जी, तहे दिल से शुक्रिया

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 22, 2013 at 11:45pm

आदरणीय विजय निकोर जी - शायद कुछ याद आ गया आपको 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 22, 2013 at 11:44pm

गीतिका "वेदिका" जी - सही पकड़ा आपने - यही शेर ही बहुत सारी परिस्थितयों को इंगित करता है|

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 22, 2013 at 11:41pm

श्री सुमित नैथानी जी - आपका तहेदिल से धन्यवाद 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 22, 2013 at 11:41pm

श्री डी पी माथुर जी, आपने सही कहा बहुत ही कम लोग मुस्कुरा कर जाते हैं, लेकिन मेरा व्यक्तिगत अनुभव है और फिर यही अभिलाषा बन गयी है|

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 22, 2013 at 11:40pm

आदरणीय बृजेश नीरज जी दिल से शुक्रिया 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 22, 2013 at 11:39pm

सुरेश श्रीवास्तव जी - आपका तहेदिल से धन्यवाद 

Comment by SAURABH SRIVASTAVA on June 21, 2013 at 8:54pm

अति सुन्दर आपको इस कविता के लिए बधाई

Comment by बृजेश नीरज on June 21, 2013 at 9:34am

बहुत सुन्दर भाव! मेरी बधाई स्वीकारें!

Comment by D P Mathur on June 21, 2013 at 7:55am

काश जाते जाते ही हर इंसान कम से कम
एक बार बिना दिखावट ही मुस्करा पाता !
ऐसा होता है पर बहुत कम क्योंकि जाते जाते
भी सभी यदि होश में रहे तो उसी मायाजाल मे
उलझे कुछ ना कुछ चिन्ता में लगे रहते हैं
आपकी भाव पूर्ण दिल को छूने वाली रचना के
लिए आपको बधाई !

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