उनके जीवन में है दुःख ही दुःख
और हम बड़ी आसानी से कह देते
उनको दुःख सहने की आदत है...
वे सुनते अभाव का महा-आख्यान
वे गाते अपूरित आकांक्षाओं के गान
चुपचाप सहते जाते जुल्मो-सितम
और हम बड़ी आसानी से कह देते
अपने जीवन से ये कितने सतुष्ट हैं...
वे नही जानते कि उनकी बेहतरी लिए
उनकी शिक्षा, स्वास्थय और उन्नति के लिए
कितने चिंतित हैं हम और
सरकारी, गैर-सरकारी संगठन
दुनिया भर में हो रहा है अध्ययन
की जा रही हैं पार-देशीय यात्राएं
हो रहे हैं सेमीनार, संगोष्ठिया...
वे नही जान पायेंगे कि उन्हें
मुख्यधारा में लाने के लिए
तथाकथित तौर पर सभ्य बनाने के लिए
कर चुके हजम हम
कितने बिलियन डालर
और एक डालर की कीमत
आज पचपन रुपये है...!
(मौलिक अप्रकाशित और अप्रसारित रचना ) अनवर सुहैल
Comment
आ0 अनवर सुहैल सर जी, हमें जन्म से यह शिक्षा दी जाती है कि किसी मजलूम का हक मत मारो...यह खुदा का कहर बनकर ढाएगी, किन्तु यहां तो अपाहिजों, दंगापीडि़तो और बाढ़ पीडि़तों का भी हक स्वाधिकार समझकर खा रहें हैं। बहुत ही समसामयिक और शानदार प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
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