For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अभी तो मुझे
दौड कर पार करनी है दूरियां
अभी तो मुझे
कूद कर फलांगना है पहाड़
अभी तो मुझे
लपक कर तोडना है आम
अभी तो मुझे
जाग-जाग कर लिखना है महाकाव्य
अभी तो मुझे
दुखती लाल हुई आँख से
पढनी है सैकड़ों किताबें
अभी तो मुझे
सूखे पत्तों की तरह लरज़ते दिल से
करना है खूब-खूब प्या....र
तुम निश्चिन्त रहो मेरे दोस्त
मैं कभी संन्यास नही लूँगा...
और यूं ही जिंदगी के मोर्चे में
लड़ता रहूँगा नई पीढ़ी के साथ
कंधे से कंधा मिलाकर....

Views: 437

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 6, 2013 at 2:22pm

यही जज्वा होना भी चाहिए ..इस जिन्दादिली को सलाम ..ऐसी रचनाओं की आज बहुत दरकार है ..सादर बधाई के साथ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 6, 2013 at 7:07am

क्या बात है ?

जीवन के उत्फुल्ल क्षणॊं के प्रति हामी होने का बेबाक चित्रण हुआ है.  मानों, अपने अंदर रूप अख़्तियार करते तथागत द्वारा अपनी दैहिक संग्नता से अपनी प्रिय में प्रतिपल विह्वल होती सशंक जीती यशोधरा को आश्वस्त करने का सायास प्रयास हो. 

सम्बन्धों के अत्यंत क्लिष्ट मनोवैज्ञानिक पहलू को साझा करते इस पद्य-भाग के लिए आपको बार-बार बधाइयाँ, आदरणीय अनवर सुहैलभाईजी.. .

सादर

Comment by Shyam Narain Verma on June 5, 2013 at 4:49pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..
Comment by विजय मिश्र on June 5, 2013 at 2:14pm
अनवर भाई , इसे ही इंसानी फितरत कहेंगे ,इंसान फ़कत इंसान बना रहे तो ये दौर इतना जालीम है कि उसे करिश्माई कहते हैं .ऐसा कमिटमेंट तो हर एक के पास होना चाहिए .प्रेरणाप्रद .
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 5, 2013 at 9:53am

तुम निश्चिन्त रहो मेरे दोस्त
मैं कभी संन्यास नही लूँगा...
और यूं ही जिंदगी के मोर्चे में
लड़ता रहूँगा नई पीढ़ी के साथ
कंधे से कंधा मिलाकर....बहुत खूब श्री अनवर सुहैल भाई क्या सुन्दर पैगाम दिया है इन पंक्तियों में हार्दिक बधाई 

Comment by ram shiromani pathak on June 4, 2013 at 9:22pm

bahut  sundar adarneey///hardik badhai

Comment by Abid ali mansoori on June 4, 2013 at 8:54pm
वाह!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service