अडिग खड़ा है
चिर स्थिर
पुष्प से लदा
धरा से आलिंगन करता
तरुवर की निः स्वार्थ सेवा
सम भाव
वाह!
सब को देखने दो कुछ क्षण
रजत जड़ी ओस की डाल
चंचल है
हिला देती है बयार
तुम भी आओ मधुप
प्रतीक्षारत है कली
मृदुल होंठो के मकरंद पी लो
अरे ! ये क्या ?
मेघ भी उतर रहे हैं
हँसते हुए
शांत सरोवर
सरिता
बूदों संग मिलकर
अद्भुत संगीत सुनायेंगे
दादुर की व्याकुलता तो देखो
अभी से टर्र-टर्र करने लगा है
अत्यंत प्रसन्न हूँ
मेघ तेरे आगमन के साथ
वातावरण क्या हो जाता है !
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीया नूतन जी ///सादर
अति सुन्दर वर्णन प्रकृति की कमनीयता का मेघ के आगमन पर ..
प्रणाम सहित हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी ///ऐसे ही स्नेह बनाए रखे ////सादर
इस कमनीय रचना का अल्हड़पन मोह गया.. .
बधाई.. .
हार्दिक आभार आदरणीय भाई संदीप जी ///सादर
हार्दिक आभार आदरणीय जीतेन्द्र जी///
हार्दिक आभार आदरणीया कुन्ती जी ///ऐसे ही अनुज पर स्नेह बनाए रखे //सादर
बहुत सुन्दर भाव आदरणीय राम भाई बधाई हो आपको
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