For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दे विधान भी कड़े कड़े

चीन ने भारतीय सीमा के अन्दर घुसकर ५ किलोमीटर लम्बी सड़क बनाई....तब कवि को लेखनी उठानी पड़ती है.......जागरण के लिए.....

1

भारती महान किन्तु अन्धकार का वितान, है अमा समान ज्ञान का नहीं प्रसार है
द्रोह वृद्धि की कमान, भ्रष्टनीति की मचान, क्यों सजी हुई कि स्वाभिमान तार तार है
मानवीयता न ध्यान, पाप पुण्य व्यर्थ मान, दानवी मनुष्य का मनुष्य पे प्रहार है
धर्म का रहा न मान, रुग्ण आँख नाक कान, शत्रु का लखो विवेक नाश हेतु वार है

2

क्यों नपुन्सकी प्रवृत्ति का प्रसार बार बार, और राष्ट्र शत्रु हौसले लिए बड़े बड़े
अंडमान के दिए गए उसे अनेक द्वीप, रो रहा त्रिवर्ण केतु क्यों दिया बिना लड़े
भीरु संसदीय कार्यपालिका बनी अपार, प्रश्न तो महत्त्वपूर्ण आज ही हुए खड़े
त्याग लोकतन्त्र वीर हाथ में संभाल राज्य देश के निमित्त दे विधान भी कड़े कड़े
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

Views: 783

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 4, 2013 at 10:29am

अशोक जी योगेन्द्र जी बहुत बहुत आभार सदा स्नेह का आकांक्षी हूँ 

Comment by Yogendra Singh on June 3, 2013 at 10:33pm

बहुत बहुत सुंदर रचना आशुतोष जी॥

हर एक पहलू को दर्शाती हुई, अपने आप से लड़ती हुई की कोई तो सुनो देश की कहानी, सबको समझती हुई,

इससे अच्छा भी कुछ हो सकता है देश के लिए उम्मीद नहीं है ॥ 

शब्दों का चयन दर्शनीय है । 

बहुत बहुत बधाई और जितनी भी तारीफ आपकी लेखनी की की जाये उतनी ही कम है ॥ 

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 3, 2013 at 8:05pm

आदरणीय डॉ. आशुतोष वाजपेयी जी सादर, बहुत सुन्दर घनाक्षरी, देश के वीरों ने बरसों बरस लड़ कर देश को गुलामी के पंजे से बाहर निकाला, लोकतंत्र स्थापित हुआ और आज चंद भ्रष्ट नेताओं के कारण देश अपने स्वाभिमान के लिए लड़ रहा है तब  कवि का गुस्सा भी जायज लगता है.

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 1, 2013 at 2:03pm

बहुत बहुत आभार सौरभ जी परन्तु जो ह्रदय की अतल गहराइयों से अनुभव करता हूँ वही शब्दों में ढाल देता हूँ कभी इश्वर ने मौका दिया तो मै अपनी बात को शास्त्र प्रमाण और अनुभव प्रमाण से सिद्ध करने का प्रयत्न अवश्य करूँगा.......पुनः आभार के साथ सदा स्नेहाकांक्षी हूँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2013 at 8:30am

आज आपकी घनाक्षरियों की पंक्तियों से गुजरना हुआ, आदरणीय आशुतोष जी.

जहाँ पहली घनाक्षरी वातावरण में व्यापे कोढ़ की बात करती है तो दूसरी रोग-मुक्ति हेतु उपायों की ओर इशारा करती है. लेकिन एक बात अवश्य है कि लोकतन्त्र से हमारा मोहभंग न हों. प्रबन्धन को न सम्भाल सकने वाले अवश्य प्रताड़ना के अधिकारी हों परन्तु यह नहीं कि प्रबन्धन की संज्ञा ही प्रश्नों के दायरे में आ जावे.

आपकी इन प्रस्तुतियों से नव-हस्ताक्षरों के रचनाकर्म के प्रवाह में भी गुणात्मक अंतर आये तो वह आपकी रचना का महती योगदान होगा. ऐसा होना ही चाहिये. रचनाकर्म में व्यक्तिगत भावनाओं या अनुभूत एकाकी पीड़ाओं का बहुत मान होता है, किन्तु केवल कोमल भावनाओं के वशीभूत भावुक शब्दों से हुआ किलोल काव्य-संज्ञा के एकांगी स्वरूप को ही प्रस्तुत करता है. 

इन उत्कृष्ट पंक्तियों के लिए मैं हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ. 

सादर

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 30, 2013 at 2:51pm

bahut bahut abhaar laxman ji

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 29, 2013 at 6:34pm

आपकी रचना पढ़कर ऐसा कौन मनुज होगा जिसे रोष उत्पन्न नहीं होगा | भारत से पाकिस्तान जाते ही चीन के प्रधान मंत्री 

के सुर बदल गए | आज ही पढ़ा की जापान से भारत की निकटता पर चीन रुष्ट है | अब तो भारतीय सीमा परे पक्की सदद ही 

बना ली | हम हाथ पर हाथ धरे बैठे देख रहे है | ऐसे लोकतंत्र का क्या फायदा | आपकी सामयिक रचना के लिए बधाई |

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 29, 2013 at 11:52am

संजय मिश्र जी और केवल प्रसाद जी आप दोनों का बहुत बहुत आभार.....अपना स्नेह वर्षण इसी प्रकार करते रहिएगा 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 28, 2013 at 9:11pm

आ0 आशुतोष भाई जी,  कल नेटवर्क में कुछ दिक्कत होने के कारण बिलम्ब हुआ,जिसके लिए क्षमा।   बहुत सुन्दर  रचना। और इस..... ’द्रोह वृद्धि की कमान, भ्रष्टनीति की मचान, क्यों सजी हुई कि स्वाभिमान तार तार है’.. पंक्ति पर विशेष रूप से  हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on May 28, 2013 at 6:12pm

द्रोह वृद्धि की कमान, भ्रष्टनीति की मचान, क्यों सजी हुई कि स्वाभिमान तार तार है...

उन्नत धनाक्षरियों के माध्यम से सामयिक आवाहन... आदरणीय डा आशुतोष वाजपेयी जी... सादर बधाई स्वीकारें....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"स्वागतम"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
16 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
17 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
18 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service