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सुबह से चढ़ रहा मुंडेर, गुनगुना सूरज,
शहर में कंपकपाती सर्दियों का फेरा है...

देखता हूँ वो कच्ची धुप में लिपा आँगन,
माँ ने नहलाके खड़ा कर दिया है फर्शी पे..

कान के पीछे लगाया है फ़िक्क्र का टीका....
और पहना दिया है पीला पुलोवर जिसमें..
बुनी है कितनी जागती रातें....

शहर में कंपकपाती सर्दियों का फेरा है,
सुबह से ढूंढ रहा हूँ वो गुनगुना सूरज

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Comment

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Comment by Sudhir Sharma on November 29, 2010 at 7:49pm
हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया नवीन जी...
शायद टाइपिंग मिस्टेक से टिप्पणी में मेरा नाम सुधीर से सतीश हो गया....
पिताजी ने सुधीर हीं रखा था....
Comment by Sudhir Sharma on November 29, 2010 at 7:44pm
धन्यवाद पांडे जी....
Comment by baban pandey on November 29, 2010 at 1:17pm
सुबह सुबह //
खिला सूरज ...उम्दा प्रस्तुति

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