For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(भाग -३ से आगे की कहानी )

जिस इलाके की यह कहानी है, वह पटना के पास का ही इलाका है, जहाँ की भूमि काफी उपजाऊ है. लगभग सभी फसलें इन इलाकों में होती है! धान, गेहूँ, के अलावा दलहन और तिलहन की भी पैदावार खूब होती है. दलहन में प्रमुख है मसूर, बड़े दाने वाले मसूर की पैदावार इस इलाके में खूब होती है. मसूर के खेत बरसात में पानी से भड़े रहते हैं. जैसे बरसात ख़तम होती है, उधर धान काटने लायक होने लगता है और इधर पानी सूखने के बाद खाली खेतों में मसूर की बुवाई कर दी जाती है. मसूर के खेत, केवाला मिट्टी (चिकनी मिट्टी) वाले होते हैं. इन खेतों में बरसात के बाद दरारें फट जाती हैं, फिर भी इनमे नमी बरक़रार रहती है. मसूर, चना, मटर, खेसारी, सरसों, राई, तीसी आदि को पानी नहीं देना पड़ता है. प्राकृतिक वर्षा जो शरद ऋतू में होती है, वही इनके लिए पर्याप्त होता है. शरद ऋतू में इन खेतों से होकर गुजरना बड़ा ही मनभावन होता है! कहते है - "अस्सल की बेटी और केवला की खेती! अगर सम्हल गयी तो गंगा पार नहीं तो बंटाधार" !
होली से पहले ही इन फसलों की कटाई कर ली जाती है और खलिहान में इनके दाने अलग कर, खलिहान से ही बिक्री कर दी जाती है. शहर के ब्यापारी बैलगाड़ी पर बोड़े में भरकर इन्हें अपने गोदामों में संचित करते हैं और आवश्यकतानुसार दाल के मिलों, या तेल के मिलों में इनको इस्तेमाल के लायक बनाकर बाजारों में बेचा जाता है.
होली के आस पास जब बैलगाड़ियाँ गांवों में आती है, तो बच्चों के अन्दर कौतूहल जगता है ... इन बैलगाड़ियों की गिनती करने का ...एक, दो,,,दस, ग्यारह ... पचास, इकावन ... बैलगाड़ियों की लाइन लग जाती है.
भुवन के पास से ब्यापारी को ढेर सारा माल एक ही जगह पर मिल जाता है, अन्य किसान भी इन्ही ब्यापारियों को अपना माल बिक्री कर देते हैं. यह कहानी उस समय की है जब सड़कें कच्ची थी और बैलगाड़ियाँ ही गांव के खलिहानों तक पहुँच सकती थी.
ब्यापारी भुवन से मोल भाव कर रहा था - "५०० रुपये प्रति मन (१ मन = ४० सेर लगभग ४० किलो ).".... "नहीं, ४५० रुपये का भाव मिलेगा"..... इस मोल भाव के बीच कही सौदा पक्का हो जाता, तभी हरखू वहां पहुँच गया और बोला - "सेठ जी, ले लीजिये. बेचारे का ऐसे ही इस साल बहुत नुकसान हो गया है, भुवन का... क्या है कि आग लग गयी थी न, इसके गांज में!" ... 'आग लग गयी थी' सुनकर सेठ (ब्यापारी) के कान खड़े हो गए और वह मसूर के दानों को अनुवीक्षण वाले नेत्र से देखने लगा ... "अरे, इसमे तो बहुत दाना काला है, यह तो ४०० रुपये के ही भाव पर बिकेगा!"
भुवन का तो खून ही सूख गया और वह ठेलते हुए हरखू को वहां से ले गया - "साला बड़ा सयाना बनता है, एक तो उस समय तुम्ही लोगों ने आग लगवाई और ऊपर से आ गए दलाली करने!" - चंदर भी खींच कर ले गया और गाँव वालों के सामने उसकी भी धुनाई कर डाली.... "बिफ़न और बुधना को यही चढ़ाया था, आग लगाने के लिए! नहीं तो उन सालों की इतनी हिम्मत न थी!" गांव वाले तो गांव वाले ठहरे, दो ग्रुप यहाँ भी थे, कोई हरखू को समर्थन करता तो कोई भुवन और चन्दर को ....भुवन का गुस्सा सातवें आसमान पर था, वह तो हरखू को मार ही डालता, पर लोगों के बीच बचाव से उस दिन हरखू की जान बच गयी.
बड़ी अजीब स्थिति है ... भारत गांवों का देश है. लगभग ७०% आबादी आज भी गांवों में रहती है ... कहते हैं, यहाँ बड़ा मेल-मिलाप होता है, सभी एक दुसरे के सुख-दुःख में साथ देते हैं, पर आजकल हर जगह राजनीति, इर्ष्या, डाह, जलन आदि का वातावरण बन गया है. जले पर नमक छिडकने से भी लोग बाज नहीं आते!
चाहे जो हो, तैयार अनाज को बेंचना ही पड़ता है, आखिर उसे घर में कहाँ रखा जा सकता है. फसल तैयार होने पर महाजन का ऋण भी चुकाना पड़ता है, जो खाद, बीज, डीजल आदि की खरीददारी के लिए लेने पड़ते हैं.
अब बिफन, बुधना के अलावा हरखू भी इन दो भाइयों का प्रत्यक्ष शत्रु बन गया था.... लोग इमानदार आदमी का भी जीना हराम कर देते हैं!
दरअसल सबका जड़ गौरी ही थी, सुन्दर के साथ, मिहनती और शालीन थी. भद्दे मजाक को बर्दाश्त न करती और उलटकर कड़ा जवाब देती! शोख किशम के लोग चाहते थे, थोडा आंख सेंकना और अगर मौका मिल गया तो नाजायज फायदा भी उठाना!
वो कहते हैं न कि मर्द बाहर से कमाकर लाते हैं और स्त्री उस धन को संजोकर लक्ष्मी बनाती है. ईर्ष्यालु लोगों के बीच भी भुवन और चन्दर को हर साल मुनाफा होता और कुछ खेत भी बढ़ जाते. खेत खरीदने में भी गांव में प्रतिद्वंदिता का सामना करना पड़ता. सर्वमान्य मुखिया जी से सहमती लेनी पड़ती, सूरज बाबु से भी मुकाबला करना पड़ता था और इस सबके चक्कर में खेत का दाम बढ़ जाता था. फिर भी ये दोनों भाई हार नहीं मानते और अपनी पूरी लगन के साथ, निष्ठा के साथ काम में लगे रहते.
दिन गुजर रहे थे. चंदर का लड़का इंजीनियरिंग की पढाई करने के लिए बड़े शहर में चला गया था. छुट्टियों में आता और सभी बड़ों को पैर छूकर आशीर्वाद लेता. इस किश्त को यहीं समाप्त करते हैं. शेष कथा अगले किश्त में!
क्रमश:)

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 536

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2013 at 4:32am

आदरणीय श्री योगी जी, सादर अभिवादन!

आपकी प्रभावी और सुंदर प्रतिक्रिया का आभार!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2013 at 4:31am

आदरणीय श्री झा जी, सादर अभिवादन!

आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया का आभार !

Comment by Yogi Saraswat on April 1, 2013 at 10:53am

आपने रचना में शुद्ध रूप से ग्रामीण संस्कृति को जिया है ! हालाँकि मुझे लगता है जो कान्वेंट में पढ़े हैं वो इन सब बातों को शायद ही समझें लेकिन जिसने (मेरी तरह ) गाँव की जिंदगी को करीब से देखा है वो इसे अपने आप से जोड़कर देखता होगा !

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on April 1, 2013 at 10:23am

आदरणीय जवाहर  जी सादर .ग्रामीण परिवेश का सुन्दर चित्रण किया है आपने .

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 28, 2013 at 5:38am

धन्यवाद अशोक जी भाई!

Comment by Ashok Kumar Raktale on March 27, 2013 at 9:06pm

आदरणीय जवाहर जी भाई बढ़िया कहानी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, बेह्तरीन ग़ज़ल से आग़ाज़ किया है, सादर बधाई आपको आखिरी शे'र में…"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा जी बहुत धन्यवाद"
3 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी, आपकी बहुमूल्य राय का स्वागत है। 5 में प्रकाश की नहीं बल्कि उष्मा की बात है। दोनों…"
3 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी। आप की मूल्यवान राय का स्वागत है।  2 मय और निश्तर पीड़ित हृदय के पुराने उपचार…"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय महेंद्र कुमार जी नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी ।सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। अच्छी ग़ज़ल हेतु आपको हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए।  ग़ज़ल हेतु बधाई। कंटकों को छूने का.... यह…"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा यादव जी ।सादर नमस्कार।ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।गुणीजनों के इस्लाह से और निखर गई है।"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय euphonic amit जी आपको सादर प्रणाम। बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय त्रुटियों को इंगित करने व…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से हर बात बताने समझाने कनलिये सुधार का प्रयास…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय, अमित जी, आदाब आपने ग़ज़ल तक आकर जो प्रोत्साहन दिया, इसके लिए आपका आभारी हूँ ।// आज़माता…"
5 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय DINESH KUMAR VISHWAKARMA आदाब ग़ज़ल के उम्द: प्रयास पर बधाई स्वीकार करें। मुश्किलों की आँधी…"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service