For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो भाई! -भाग 5 (अंतिम)

भाग -5
गतांक से आगे)
भुवन की लड़की पारो (पार्वती) शादी के लायक हो चली थी. एक अच्छे घर में अच्छा लड़का देख उसकी शादी भी कर दी गयी. शादी में भुवन और गौरी ने दिल खोलकर खर्चा किया, जिसकी चर्चा आज भी होती है. बराती वालों को गाँव के हिशाब से जो आव-भगत की गयी, वैसा गाँव में, जल्द लोग नहीं करते हैं.
******
चंदर का बेटा प्रदीप शहर में रहकर इन्जिनियरिंग की पढाई कर रहा था.. दिन आराम से गुजर रहे थे. पर विधि की विडंबना कहें या मनुष्य का इर्ष्या भाव, जो किसी को सुखी देखकर खुश नहीं होता बल्कि चाहता है कि अमुक आदमी जो खुशहाल है, कैसे तंगहाल हो जाय ताकि उसके मन को शांति मिले!
*****
कहते हैं, गरीब की जोड़ू, पूरे गाँव की भौजी! गौरी गरीब परिवार से थी और सुन्दर भी थी, पर किसी को भी पास फटकने न देती थी. गाँव के कुछ बदचलन किशम के लोग हमेशा मौके की तलाश में रहते और अकेला देख फूहड़ मजाक भी कर डालते!
बिफन और बुधना उन्ही लोगों में से था – “अकेला देख कहता - का भौजी, कैसे हैं? आप अइसन सुन्दर शरीर लेकर खेत में काम करते हैं! हमको बड़ा दुःख होता है! भुवन को तो आपका कीमत ही नहीं मालूम. वो भी दिन भर खेत में ही लगा रहता है और रात में थक कर दालान में सो जाता है! कभी हमलोगों को भी मौका दीजिए न! .....आपको फिर कभी खेत में काम नहीं करना पड़ेगा.”
गौरी सुन्दर और गरीब होने के बावजूद भी किसी को घास नहीं डालती, या तो चुपचाप सुन लेती, नहीं तो मुंहतोड़ जवाब भी देती-"बुलावें का भैया को!.... जीभे उखाड़ लेंगे! .....का समझ के रक्खे हो! ....जाओ अपना रास्ता नापो!"
बिफन और बुधना के मन में टीस होता रहता था.....
एक दिन भुवन और चंदर दूर के खेतों में काम में लगे थे, गौरी अपने पुराने नौकर (रोहन) के साथ गाँव के नजदीक वाले खेत में पानी पटाने में लगी थी. पानी जाने वाला करहा (कच्ची नाली) बिफ़न और बुधना के खेत से होकर गुजरता था.. उस दिन मौका देख उनलोगों ने आपस में प्लान बनाया, “ई गौरी ही बड़ी भाग्यवन्ती बन कर आई है, भुवन की जिंदगी में! उसी के आने के बाद से भुवन के यहाँ चमत्कार हुआ है. इसी को साफ़ कर देते हैं, ना रहेगा बॉस ना बजेगी बांसुरी!” - आज ही मौका है, गौरी को मजा चखाने का. हरखू के दालान की कोठरी में प्लानिंग हुआ. चखना के साथ दारू भी चला और प्लानिंग के अनुसार पहले बिफन और बुधना गौरी के पास गए. कहा – “आपका पानी आज इधर से नहीं जाएगा.”
“काहे?” – गौरी बोली.
“हमारा खेत ख़राब होता है.”
“लेकिन यह तो आज से नहीं जा रहा है पानी. सबका पानी तो इसी करहे से जाता है.”
“सबका जाता है, लेकिन आज हम नहीं जाने देंगे.” फिर उन दोनों ने एक दूसरे को कनखी मारी
“ठीक है, तो देखते हैं कौन माई का लाल मेरा पानी रोकता है.”
“बिफ़न ने करहे में कुदाल से मिट्टी डाल दी, फलस्वरूप पानी इधर उधर फैलने लगा.”
गौरी ने अपने नौकर रोहन से कहा – “बाबु, मिट्टी हटा दो और पानी को बर्बाद होने से बचाओ.”
बिफ़न बीच में आ गया – “आओ तो देखते हैं”.... और उसने नौकर को धक्का दे हटा दिया.
गौरी ने नौकर को गिरने से बचाया और उसने बिफ़न को जोर का धक्का दिया, बिफ़न जमीन पर गिर गया.
अब बुधना जो लाठी सम्हाले हुए था, एक लाठी गौरी के पीठ पर दे मारी.
अब गौरी आग बबूला हो गयी और उसने बुधना की लाठी छीन ली और उसे मारने को तैयार ही थी कि बिफ़न उठकर गौरी को धक्का दे गिरा दिया.
मौके की तलाश में घात लगाये नकटा (बिफन और बुधना का यार मार काट के लिए मशहूर) भी अचानक प्रकट हो गया - उसके हाथ में फरसा था.
मारो! काटो! की आवाज के बीच उसने फरसे से भी वार कर दिया. फरसा गौरी के कंधे पर लगा और वह छटपटा कर गिर गयी. उसके बाद हरखू भी कही से आ गया, उसके हाथ में भी लाठी थी. सबने मिलकर एक निहत्थी महिला पर खूब मर्दानगी दिखलाई. लाठी के प्रहार से पूरे शरीर को चूर कर दिया. नौकर (रोहन) दौड़कर चला गया, भुवन और चंदर को बुलाने..... तबतक गांव के और लोग भी इकट्ठे हो गए थे. कुछ लोगो ने बीच बचाव किया ... तब वे लोग (चारो) वहां से खिसक लिए.
थोड़ी ही देर में भुवन और चन्दर आ पहुंचे. कोशिला अपनी जेठानी को पानी पिला रही थी और बहते हुए खून को रोकने का भरपूर प्रयास कर रही थी. गौरी रोये जा रही थी और उन चारो दुश्मनों को गाली भी दे रही थी. दोनों भाइयों के साथ कुछ अन्य भले लोगों ने मिलकर गौरी को खाट पर सुलाया और खाट को ही कंधे पर लेकर पैदल ही अस्पताल की तरफ चले. रास्ते में ही थाना था, उन्होंने थाने में रिपोर्ट भी लिखवा दी. गौरी ने उसी अवस्था में बयान दे दिया और अभियुक्तों के नाम भी बतला दी. फिर वे लोग उसे नजदीक के अस्पताल में ले गए. यह अस्पताल भी गाँव से कोई छ: मील की दूरी पर था. पहले इस अस्पताल में इलाज हुआ. पर छोटे शहर के सरकारी अस्पताल में ज्यादा सुविधा न थी. फिर उसे बड़े शहर(पटना) के बड़े अस्पताल में रेफर किया गया. इलाज हुआ... पर खून काफी निकल चुका था. हड्डियाँ भी जगह जगह से टूट चुकी थी. चार दिन बाद, गौरी अपनी मौत से हार गयी और इस दुनिया को छोड़ भगवान् को प्यारी हो गयी.
उन बदमाशों ने मिलकर एक अबला और निहत्थी नारी को मारा था. गौरी झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की तरह लड़ते लड़ते मरी थी. मरते दम तक वह हिम्मत नहीं हारी थी.
भुवन और चन्दर उसकी अंतिम सांस तक साथ रहे और अंत में पटना में ही, गंगा के किनारे दाह-संस्कार कर दिया. वही पर उन लोगों ने कशमें खाई कि उन चारों हत्यारों को सजा दिलाकर रहेंगे. अगर कोर्ट सही फैसला नहीं करता है, तो वे उनको खुद सजा देंगे.

कई सालों तक मुक़दमा चला और हत्या के जुर्म में चार दोषियों ( बिफन, बुधना, नकटा और हरखू) को आजीवन कारावास की सजा हो गयी! अन्य दो लोगों को भी जो इस षड्यन्त्र में शामिल थे, उन्हें भी १० साल की कठोर सजा सुनाई गयी.
*******
कोर्ट ने अपन काम किया. दोषी को सजा मिल गयी. पर भुवन इन दिनों टूट सा गया! उसे किस अपराध की सजा मिली?उसने तो किसी का बुरा नहीं चाहा था. गौरी उसके लिए लक्ष्मी साबित हुई थी. घर बाहर हर तरह से उसके साथ रहती थी, दुःख में भी, सुख में भी. पार्वती भी अपने माँ के गम में डूबी है, चन्दर सबको ढाढस बंधा रहा है. पर वह भी अंदर अंदर विलाप करता है, क्योंकि उसके लिए भाभी माँ समान थी.
सजा काट रहे चार मुख्य अभियुक्तों में एक नकटा (जिसने फरसे से वार किया था) को पक्षाघात (लकवा) मार गया और कुछ दिनों बाद उसकी जेल में ही मृत्यु हो गयी. बाकी ३+२ अभी सजा काट रहे हैं.
********
किसी को गौरी के जन्म दिन के बारे में नही पता. पर उसके बलिदान दिवस को सभी याद करते हैं. भुवन, जो कभी प्रत्यक्ष पूजा पाठ नहीं करता था, बलिदान दिवस के दिन देवी के मंदिर में जाता है और अपनी पत्नी से माफी मांगता है – “धिक्कार है मुझे, जो मैं तुझे बचा न सका! तुम्हे स्वर्ग में ही स्थान मिला होगा, क्योंकि तुम शहीद हुई थी. ........बलिदान दिवस के दिन रामायण पाठ का आयोजन होता है और गांव के सभी लोग उस वीरांगना को श्रद्धांजलि देते हैं!
(यह कहानी कल्पित नहीं, सच्ची घटना है! इसके पात्रों के नाम सिर्फ काल्पनिक है )

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 546

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 8, 2015 at 1:17pm

आदरणीय सोमेश kumar जी, सादर अभिवादन!

संयोगवश मैंने आपकी प्रतिक्रिया को बहुत जल्द देख लिया आपकी सुधारात्मक, रचनात्मक प्रतिक्रिया को पढ़ा और विचार मग्न हो गया हूँ. निश्चित ही इस सच्ची घटना पर आधारित कहानी को फिर से लिखने प्रयास करूंगा ... आज महिला दिवश के अवसर पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए अमूल्य है ...दरअसल मेरा उद्देश्य एक गांव की नारी शक्ति एक इमानदार मिहनती भाइयों की जोड़ी को उजागर करना ही मेरा लक्ष्य था ,,,कहानी के क्रम में विबिन्न स्थितयों से गुजरना जरूरी लगा था. फिर भी पुन: प्रयास करूंगा और और आपसे संपर्क करने की कोशिश करूंगा ...सादर!

Comment by somesh kumar on March 7, 2015 at 11:00am

इस कहानी की सभी किस्तों को लगातार पढ़ा और आप के नजरिए से इस कहानी को समझने की कोशिश की ,शायद इस कहानी के विस्तार पटल को समेटने की आवश्कता थी |असली घटना पर होते हुए भी इस कथा को कुछ और संगठित किया जाता तो ये कथा और अधिक प्रभावशाली हो जाती| खड़ी बोली में लिखने और विवरण -शैली में प्रस्तुत कहानी में भाषा को पटना वाली हिंदी यानि कि बोलियों के प्रभाव से बचाया जाना चाहिए था |आग्रह है कि आप जब भी ये टिप्पणी पढ़े इस कहानी में आवश्यक सुधार करें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service