Comment
प्रेम ही तो जगत का सृजनहार है।
सत्य है.
सादर बधाई
आदरणीया वन्दना जी
सादर आभार आपका आदरणीय सौरभ पाण्डेय महोदय।
आपके आशीर्वचनो से अभिभूत हूं।
प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद और शुभकामनाएँ.
प्रयुक्त शब्दों को रचना के अंतर्निहित भाव के साथ पगाते और साधते जायें.. .
शुभ-शुभ
//प्रेम ही तो जगत का सृजनहार है।//
बहुत सुन्दर संदेश!
बहुत सुन्दर रचना
अप्रतिम शब्द संरचना!
आदरणीया वंदना जी:
बहुत ही सुन्दर भाव हैं।
बधाई।
आदरणीया वंदना जी:
मैं धन्य तुम दोनों से कहीं अधिक हूं
शीतल छांव का भाजक एक पथिक हूं
त्याग समर्पण प्रीति के प्राण हैं
चैन बंटता है जिसकी सुखद छांव में
प्रेम ही तो जगत का सृजनहार है।
बहुत ही सुन्दर भाव हैं।
बधाई।
सादर,
विजय निकोर
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