For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब मि . गुप्ता ने कैफे में प्रवेश किया तब मि . खान और मसंद का ठहाका उनके कानों में पड़ा। उन्हें देखकर मि .खान बोले " आओ भाई सुभाष आज देर कर दी।" मि . गुप्ता ने बैठते हुए कहा " अभी तक रघु नहीं आया, वो तो हमेशा सबसे पहले आ जाता है।" मि . मसंद बोले " हाँ हर बार सबसे पहले आता है और हमें देर से आने के लिए आँखें दिखाता है, आज आने दो उसे सब मिलकर उसकी क्लास लेंगे।" एक और संयुक्त ठहाका कैफे में गूंज उठा।

तीनों मित्र मि . मेहता का इंतज़ार कर रहे थे। मि . मेहता ही थे जिन्होंने चारों मित्रों को फिर से एकजुट किया था। चारों कॉलेज के ज़माने के अच्छे मित्र थे। कॉलेज में उनका ग्रुप मशहूर था। किन्तु वक़्त के बहाव ने इन्हें अलग कर दिया। रिटायरमेंट के बाद मि . मेहता ने खोज बीन कर बाकी तीनों को इक्कठा किया। इत्तेफाक से सभी मित्र एक ही शहर में थे। सभी पहली बार इसी कैफे में मिले थे। उसके बाद यह कैफे ही उनका अड्डा बन गया। हर माह की बीस तारीख को सभी यहीं मिलते। आपस में हंसी मजाक करते। कुछ पुरानी यादें ताज़ा करते। मि .खान की शायरी और मि .मसंद के चुटकुले इन महफिलों को चार चाँद लगाते थे। इस तरह वक़्त कब बीत जाता उन्हें पता ही नहीं चलता था।

मि .खान ने अपनी घडी पर नज़र डालते हुए कहा " यार आज तो बहुत देर हो गयी, रघु अभी तक नहीं आया।" मि .मसंद ने भी चिंता जताते हुए कहा " हाँ यार जावेद ठीक कह रहा है।" मि . खान ने मि . मसंद से कहा " भाई नवीन ज़रा फ़ोन तो लगाओ उसे।" मि .मसंद अपना फोन निकाल ही रहे थे कि मि . गुप्ता ने उन्हें रोकते हुए कहा " ठहरो नवीन, ज़रूर कोई खास बात होगी वरना रघु अपने नियम का पक्का है। उसके घर चलकर ही देखते हैं।" मि .खान ने भी उनकी बात का समर्थन किया। तीनों मित्र मि .मेहता के घर चल दिए।

मि . मसंद ने काल बेल दबाई। मि .मेहता की बहू ने दरवाज़ा खोला। तीनों अन्दर जाकर बैठ गए। मि . मेहता की बहू ने बताया की पंद्रह तारीख को अचानक उन्हें दिल का दौरा पड़ा। अस्पताल पहुँच कर उन्होंने दम तोड़ दिया। अपने मित्र की अकस्मात् मृत्यु की खबर सुनकर तीनों मित्र स्तब्ध रह गए। कुछ देर ठहराने के बाद वो कैफे में वापस आ गए।

कुछ देर शांति छाई रही। मौन को तोड़ते हुए मि . मसंद बोले " अब ........" "अब क्या नवीन अगले महीने बीस तारिख को हम फिर मिलेंगे।" मि . गुप्ता ने एक निर्णय के साथ कहा। " लेकिन रघु तो रहा नहीं।" मि . मसंद ने हिचकिचाते हुए कहा। " तो क्या , हमने कोई पहली बार किसी अपने को खोया है। हम दोनों ने अपनी पत्नियों को खोया है। जावेद ने तो अपने जवान बेटे की मौत का दुःख झेला है। मिलना और बिछड़ना तो जीवन का हिस्सा है। किन्तु जीवन तो बहती धारा है। सोंचो तो रघु ने कितनी मेहनत की थी हमें एक साथ लाने के लिए। पता नहीं अगली बारी हम में से किसकी हो किन्तु जब तक हैं यूँ ही एक दूसरे का सुख दुःख बाटेंगे। पहले की तरह ही हम यहाँ मिलेंगे। हंसी मजाक करेंगे। हमारे मित्र को हमारी यही सच्ची श्रद्धांजली होगी।" यह कह कर उन्होंने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। तीनों मित्रों ने एक दूसरे का हाथ थाम कर अहद किया कि वो एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे। अगली बीस तारिख को मिलाने का वादा कर तीनों अपने अपने घर चले गए।

Views: 570

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Yogi Saraswat on March 11, 2013 at 11:33am

मिलना और बिछड़ना तो जीवन का हिस्सा है। किन्तु जीवन तो बहती धारा है। जीवन का यही फलसफा है ! सुन्दर सन्देश देती रचना

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on March 10, 2013 at 11:47am

DHNYAWAAD

ram shiromani pathak JI

Comment by ram shiromani pathak on March 9, 2013 at 7:21pm

waaaaaaaaah waaaaaah kya baat hai adarneey ashish kumar ji...bahot badiya

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
8 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
8 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
8 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
9 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
14 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service