For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बेंच बेंच दूल्हा किया, शादीघर बदहाल-

मौलिक / अप्रकाशित

बड़ा बटोरा आज तक, लोलुपता ने माल |

बेंच बेंच दूल्हा किया, शादीघर बदहाल |

शादीघर बदहाल, सुता चैतन्य आज है ।

बढ़ा चढ़ा विश्वास, स्वयं पर उसे नाज है ।

रविकर चाल सुधार, नहीं तो क्वांरा छोरा ।

नहीं सकेगा भोग, माल जो बड़ा बटोरा ॥

Views: 448

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pawan amba on March 3, 2013 at 12:52pm

 रचना के लिए  बधाई!.....

Comment by रविकर on March 3, 2013 at 12:39pm

आभार आदरणीय अग्रज -

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 3, 2013 at 12:20pm

सामाजिक बुराई और उसे सुधारने का युवाओ का जज्बा हो यह आवश्यक है रविकर जी - आपकी झटपट गढ़ी रचनाए दिनप्रति दिन नखर कर आ रही है, हार्दिक बधाई -

झट प्रसाद देने लगे, चट मँगनी पट ब्याह

समझ संकेत आज के, वर्ना फिर पछाताह| - लक्ष्मण   

Comment by रविकर on March 3, 2013 at 11:06am

आदरणीय आप का हमेशा स्वागत है-
मैं स्वयं भी सचेत रहा करूंगा इस उत्कृष्ट प्लेटफोर्म पर -
सादर-

Comment by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 11:03am

आपका आभार रविकर जी!

अभी सीखने की प्रक्रिया में हूं। क्षमा इसलिए कि असावधानी बरतते हुए मैंने यह टिप्पणी कर दी। इस प्रक्रिया से एक लाभ मुझे हुआ कि यह बात अब नहीं भूलूंगा।

Comment by रविकर on March 3, 2013 at 10:56am

असमंजस में पड़ गया था मैं तो-
आभार आदरणीय सौरभ जी-
बहुत बहुत आभार आदरणीय बृजेश जी -
आप निश्चिन्त होकर यहाँ इंगित कर सकते हैं-
हमेशा स्वागत है मान्यवर-
क्षमा मांग कर शर्मिन्दा न करें मान्यवर ||

Comment by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 10:53am

मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी! मुझे अपनी त्रुटि का एहसास हो गया। ‘क्वांरा’ में मात्रा गणना में मैंने गलती की। रविकर जी से क्षमा चाहूंगा।

उनकी रचना के लिए उन्हें बधाई!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 3, 2013 at 10:46am

भाई बृजेश जी,

न(१)हीं(२) तो(२) क्वां(२)रा(२) छो(२)रा(२) = कुल योग १३

उक्त चरण की मात्रा नियमानुसार है.. . 

बहुत अच्छा लगा आप इतने आग्रही हो रहे हैं और जानने की इतनी लगन लगी है. अति उत्तम भाईजी.

शुभेच्छाएँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 3, 2013 at 10:42am

बखूबी चेताती हुई पंक्तियों के लिए आदरणीय रविकरजी, सादर बधाइयाँ .. . 

आज की प्रखर सुताओं की चेतनता ही समाज में मनस-परिवर्तन का कारण है.

वैसे बार-बार स्वयं को बिकने को प्रस्तुत करने और तुलवाने के बाद भी छोरा ’कुआँरा’ ही कहालाता है !.. हा हा हा हा.. बहुत मारक तंज है हुज़ूर.. बधाई-बधाई-बधाई.. . 

Comment by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 10:20am

नहीं तो क्वांरा छोरा

आदरणीय रविकर जी, मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यहां मात्रा अधिक हैं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service