For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अब रंग रंग के फूल खिले हैं,

मेहनत कर रहा  माली |

बरसों से था आस लगाये,

रब कब महकेगी डाली |

तड़के उठ कर  बाग़ सजाये,

आ जाती है  घर वाली |

हरा भरा है  बाग़ सुहावन,

देख मनाएं  खुशिहाली |

फूलों पर मधुप गुनगुनाते,

झूम  वसंती  रागों में  |

देख इठलाती तितलियों को,

मन घुल जाये पागों में |

आम मंजरी से रस बरसे,

महके वातावरण सारा |

मधुर पवन के झोंके में बस,

टिकोरा लगे है  प्यारा |

होली गीत सुनाये कोयल,

झूम झूम के डाली में |

आ बुलबुल चहकें  शाखों पर,

फिर जोश भरें  माली में  |

जाड़ा गरमी बरसातों में,

लगा रहा दिन रातों में |

फूल देखने की चाहत में,

उलझा ना पर बातों में |

मेहनत से मिल गयी मंजिल,

अब तो खुशी मनायेगा |

कैसे बिता रात दिन उसका,

दुनिया को बतलायेगा |

मेहनत तो सभी करते हैं,

पर विरले  मंजिल पाते |
वर्मा बस  नसीब के  मारे,

पसीना बहा पछताते ।


श्याम नारायण वर्मा

Views: 386

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pawan amba on March 3, 2013 at 2:00pm

मेहनत से मिल गयी मंजिल,

अब तो खुशी मनायेगा |

कैसे बिता रात दिन उसका,

दुनिया को बतलायेगा |...achhi hai...

Comment by रविकर on March 3, 2013 at 12:56pm

परिश्रम दिख रहा आदरणीय-
शुभकामनाएं-

Comment by Dr.Ajay Khare on March 2, 2013 at 3:43pm

badia rachana badhai

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 1, 2013 at 9:43pm
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी!
भाव के दृष्टिकोण से तो मैं आपको बधाई देता हूं,
लेकिन बुरा मत मानियेगा(जहां तक मैं समझता कि उसी तरह से बात करने जरा हूं),किन्तु इसे हम ढंग की कविता भी नहीं कह सकते।क्या रचना पर थोड़ा और समय नहीं दिया जाना उचित न होगा?
सादर
Comment by SALIM RAZA REWA on March 1, 2013 at 9:25pm

मेहनत तो सभी करते हैं,

पर विरले  मंजिल पाते |

achi rachna hai  verma ji

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service