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मैं महसूस करता हूँ

जब भी

अंदर तक बिखरा

तुम्हारे कदमों की आहट

फिर से समेट देती है

मेरा अंर्तमन

चेतनशून्य से

चैतन्यता लौट आती है

मेरे पास

तुम्हारा मुस्कराता चेहरा

मेरी आंखों के सामने होता है

                      - बृजेश नीरज

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 12:23pm

मेरे बिखरे वजूद के टुकड़ों को समेटने के लिए तेरी याद ही काफ़ी है
बहुत उम्दा भावों को समेटा है चंद पंक्तियों में बधाई आपको

Comment by vijay nikore on February 19, 2013 at 12:21pm

आ० ब्रजेश जी:

थोड़े-से शब्दों में बहुत कह दिया है।

बधाई।

विजय निकोर

Comment by Dr.Ajay Khare on February 19, 2013 at 12:03pm

brijesh ji rachana sunder ban padi hai badhai


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 19, 2013 at 11:16am

बहुत सुन्दर भाव आ. ब्रजेश जी. बधाई स्वीकारें 

Comment by नादिर ख़ान on February 19, 2013 at 9:29am

जब भी
अंदर तक बिखरा
तुम्हारे कदमों की आहट
फिर से समेट देती है
मेरा अंर्तमन
चेतनशून्य से
चैतन्यता लौट आती है....
क्या बात है ब्रजेश जी बहुत उम्दा फीलिंग्स....

कृपया ध्यान दे...

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