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"गरीबी में आटा गीला"

गरीबी में हुआ गीला आटा,
फिर से लगा ज़ोरदार चांटा !
रोटी छीन गयी क्षण भर में ,
खड़ा हो गया गरीबी के रण में !!

क्या रोटी हो गयी अनमोल ,
इश्वर अब तो कोई पथ खोल !
मै अधीर ,व्यग्र ,व्याकुल  मन से ,
कब दूर होगी गरीबी इस जीवन  से !
इश्वर कब दूर होगा दुःख दाह,
अब तो दिखा दो कोई राह !!!!

ईश्वर !

गरीबी का करो अभिषेक ,
थोड़ा लगाओ अपना विवेक !
यदि इमानदारी की रोटी खाओगे ,
सदैव गीला आटा पाओगे !

हटाओ ये गरीब की ओट,
तू भी बेईमानी में लोट !
इश्वर ने फिर मुझको डाटा,
क्यूँ तूने अपना गम बाटा!!

राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on February 4, 2013 at 8:32am

गरीबी के रोने पर व्यंग करती सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें राम शिरोमणि जी.

Comment by ram shiromani pathak on February 3, 2013 at 2:50pm

मैंने यह मंच इसी लिए ज्वाइन किया है की आप जैसे गुरुजनों का सानिध्य मिले और मै अपनी गलतियों का सुधार कर सकू !! आप  लोगो का स्नेह मिल रहा है हार्दिक आभार आप सब का !!सौरभ सर आपका मै हार्दिक आभार मानता हूँ !जबसे रचनाये मै पोस्ट कर रहा हु आपका बराबर सुझाव मिल रहा है !!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 3, 2013 at 11:56am
राम शिरोमणि जी, आपके प्रयास रत रहने के लिए बधाई 
आदरणीय सौरभ जी की सलाह पर गौर करे 
छोडो लगाओ अपना विवेक - इसके क्या अर्थ है  
दोनों शब्द एक साथ विपरीत बात के लिए, वह भी बगैर कोमा आदि से प्रथक किये 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on February 3, 2013 at 11:45am

वाह !!! सामयिक परिदृश्यों को शब्दों में सुंदरता से पिरोया है, बधाई...............


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 3, 2013 at 11:41am

गरीबी के मुद्दे पर अच्छा कटाक्ष किया है अंतिम पंक्तिया बहुत अच्छी लगी जो गम देता है वो किसी से बांटने भी नहीं देता ,वाह सही सोच बाकी आदरणीय सौरभ जी ने कह दिया टंकण त्रुटियों पर ध्यान दें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 3, 2013 at 7:23am

भाई राम शिरोमणिजी, मंच पर आपकी सदस्यता आपके रचनाकर्म के विकास में उत्प्रेरक का काम करे. आप अन्य रचनाकारों की रचनाएँ अवश्य पढ़ते होंगे,  उन पर आपनी समझ के अनुसार कमसे कम एक औसत पराग्राफ की टिप्पणियाँ दिया करें. इस आदत से देखियेगा, बहुत कुछ सधने लगेगा. अक्षरी/हिज्जे दोष देखियेगा, वह भी दूर होगा.

अपनी प्रस्तुत रचना के निम्नलिखित वाक्यांश को देखिये =

इश्वर अब तो कोई पथ खोल !
मै अधीर ,ब्याग्र ,ब्याकुल मन से ,  

देखिये, रेखांकित शब्दों की अक्षरियाँ/हिज्जे अशुद्ध हैं.  और, कब दूर होगी गरीबी इस तन से ... इसका क्या मायना भाई ? तन से गरीबी ?

भाई इस तरह के बिम्ब को किसी और रूप में प्रयोग किया जाता है.

शुभेच्छाएँ

Comment by नादिर ख़ान on February 2, 2013 at 11:38pm

मुनव्वर राणा जी का शेर याद आ रहा है ....

सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर

 मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते 

सच ये है की  मेहनत और ईमाननदारी की रोटी में ही आफ़ियत है .

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